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अनुसंधान का अर्थ ( Meaning of Research)

अनुसंधान के द्वारा उन मौलिक प्रश्नों के उत्तर देने के प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर अभी तक उपलब्ध नहीं हो सका है। यह उत्तर मानवीय प्रयासों पर आधारित होता है इस प्रत्यय को चन्द्रमा के एक उदाहरण से स्पष्ट किया जा सकता है। कुछ वर्ष पहले जब तक मनुष्य चन्द्रमा पर नहीं पहुँचा था, चन्द्रमा वास्तव में क्या हैं ? इस सम्बन्ध में सही जानकारी नहीं थी। यह एक समस्या भी थी जिसका कोई समाधान भी नहीं था। मनुष्य को चन्द्रमा के सम्बन्ध में मात्र आवधारणाएं ही थी, शुद्ध ज्ञान नहीं था। परन्तु मनुष्य अपने प्रयास से चन्द्रमा पर पहुंच गया है। इस प्रकार शोध कार्यों द्वारा उन प्रश्नों का उत्तर खोजने का प्रयास किया जाता है जिनका उत्तर साहित्य में उपलब्ध नहीं है अथवा मनुष्य की जानकारी में नहीं है। उन समस्याओं का समाधान खोजने का प्रयत्न किया जाता है जिसका समाधान उपलब्ध नहीं है और न ही मनुष्य की जानकारी में है।

अनुसंधान की परिभाषा ( Definition of Research)

अनेक परिभाषाएं अनुसन्धान की गई है प्रमुख परिभाषा इस प्रकार हैं-

रेडमेन एवं मोरी के अनुसार- “नवीन ज्ञान की प्राप्ति के लिए व्यावस्थित प्रयास ही अनुसंधान हैं।”

पी० एम० कुक के अनुसार- ‘अनुसंधान किसी समस्या के प्रति ईमानदारी, एवं व्यापक रूप में समझदारी के साथ की गई खोज है। जिसमें तथ्यों, सिद्धान्तों तथा अर्थों की जानकारी की जाती है। अनुसंधान की उपलिब्ध तथा निष्कर्ष प्रामाणिक तथा पुष्टि करने योग्य होते हैं। जिससे ज्ञान में वृद्धि होती है।

उद्देश्य ( Objectives of Research)

शोध समस्याओं की विविधता अधिक है इसके चार प्रमुख उद्देश्य होते हैं- सैद्धान्तिक उद्देश्य, तथ्यात्मक उद्देश्य, सत्यात्मक उद्देश्य तथा व्यावहारिक उद्देश्य इनका संक्षिप्त विवरण इस प्रकार है-

  • सैद्धान्तिक उद्देश्य ( Theoretical Objectives)- अनुसंधान में वैज्ञानिक शोध कार्य द्वारा नये सिद्धान्तों तथा नये नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। इस प्रकार के शोध कार्य में अर्थापन होता है। इसमें चरों के सम्बन्धों को प्रगट किया जाता है और उनके सम्बन्ध में सामान्यीकरण किया जाता है। इससे नवीन ज्ञान की वृद्धि होती है, जिनका उपयोग शिक्षण तथा निर्देशन की प्रक्रिया को प्रभावशाली बनाता है।
  • तथ्यात्मक उद्देश्य ( Factual Objectives)- शिक्षा के अन्तर्गत ऐतिहासिक शोध-कार्यो। द्वारा नये तथ्यों की खोज की जाती है। इनके आधार पर वर्तमान को समझने में सहायता मिलती है। इन उद्देश्यों की प्रकृति वर्णनात्मक होती है। क्योंकि तथ्यों की खोज करके, उनका अथवा घटनाओं का वर्णन किया जाता है। नवीन तथ्यों की खोज शिक्षा-प्रक्रिया के विकास तथा सुधार में सहायक होती है, निर्देशन प्रक्रिया का विकास तथा सुधार किया जाता है।
  • सत्यात्मक उद्देश्य ( Establishment of Truth Objective)- दार्शनिक शोध कार्यों द्वारा नवीन सत्यों का प्रतिपादन किया जाता है। इनकी प्राप्ति अन्तिम प्रश्नों के उत्तरों से की जाती है। दार्शनिक शोध-कार्यों द्वारा शिक्षा के उद्देश्यों, सिद्धान्तों तथा शिक्षण विधियों तथा पाठ्यक्रम की रचना की जाती है। शिक्षा की प्रक्रिया के अनुभवों का चिन्तन बौद्धिक स्तर पर किया जाता है। जिससे नवीन सत्यों तथा मूल्यों को प्रतिपादन किया जा सकता है।
  • व्यावहारिक उद्देश्य ( Application Objectives)- शैक्षिक अनुसंधा निष्कर्षों का व्यावहारिक प्रयोग होना चाहिए। परन्तु कुछ शोध-कार्यों में केवल इन्हें विकासात्मक अनुसन्धान भी कहते है। क्रियात्मक अनुसन्धान से शिक्षा की प्रक्रिया में सुधार तथा विकास किया जाता है अर्थात् इनका उद्देश्य व्यावहारिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से इसका उपयोग अधिक होता है। स्थानीय समस्या के समाधान से भी इस उद्देश्य की प्राप्ति की जाती है। निर्देशन में इसकी उपयोगिता अधिक होती है।

अनुसन्धान का वर्गीकरण (Classification of Research)

अनुसन्धान के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि अनुसन्धानों का वर्गीकरण कई प्रकार से किया जा सकता है। प्रमुख वर्गीकरण मानदण्ड पर आधारित है-

योगदान की दृष्टि से (Contribution Point of View)

शोध कार्यों के योगदान की दृष्टि से शैक्षिक अनुसन्धानों को दो भागों में विभाजित कर सकते हैं-

मौलिक अनुसंधान ( Basic or Fundamental Research)- इन शोध कार्यों द्वारा नवीन ज्ञान की वृद्धि की जाती है-नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन नवीन तथ्यों की खोज, नवीन तथ्यों का प्रतिपादन होता है। मौलिक-अनुसन्धानों से ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि की जाती है। इन्हें उद्देश्यों की दृष्टि से तीन भागों में बाँटा जा सकता है-

  • प्रयोगात्मक शोध-कार्यों से नवीन सिद्धान्तों तथा नियमों का प्रतिपादन किया जाता है। सर्पक्षण शोध से इसी प्रकार का योगदान होता है।
  • ऐतिहासिक शोध कार्यो से नवीन तथ्यों की खोज की जाती है। जिनमें अतीत का अध्ययन किया जाता है और उनके आधार पर वर्तमान को समझने का प्रयास किया जाता है।
  • दार्शनिक शोध कार्यों से नवीन सत्यों एवं मूल्यों का प्रतिपादन किया जाता है। शिक्षा का सैद्धान्तिक दार्शनिक अनुसन्धानों से विकसित किया जा सकता है।

महत्वपूर्ण लिंक

  • निर्देशन (Guidance)- अर्थ, परिभाषा एवं विशेषतायें, शिक्षा तथा निर्देशन में सम्बन्ध
  • सूक्ष्म-शिक्षण- प्रकृति, प्रमुख सिद्धान्त, महत्त्व, परिसीमाएँ
  • निर्देशन के उद्देश्य (Aims of Guidance in Hindi)
  • शैक्षिक निर्देशन (Educational Guidance)-परिभाषा, विशेषताएँ, सिद्धान्त
  • शैक्षिक निर्देशन-उद्देश्य एवं आवश्यकता (Objectives & Need)
  • व्यावसायिक निर्देशन (Vocational guidance)- अर्थ, उद्देश्य, शिक्षा का व्यावसायीकरण
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  • विशेष शिक्षा की आवश्यकता | Need for Special Education
  • New Education Policy- Characteristics & Objectives in Hindi
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  • सूक्ष्म शिक्षण- परिभाषा, सूक्ष्म शिक्षण प्रक्रिया, प्रतिमान, पद
  • व्यावसायिक निर्देशन- आवश्यकता एवं उद्देश्य (Need & Objectives)

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बहुत सुन्दर प्रस्तुति। सम्पूर्ण जानकारी देने में सक्षम है।

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अनुसंधान की परिभाषाएं

अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं | शोध के उद्देश्य | उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार

अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं |   शोध के उद्देश्य | उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार | Research or research concept in Hindi | Definitions of research or research in Hindi | Research Objectives in Hindi | Types of research based on purpose in Hindi

Table of Contents

अनुसंधान या शोध की अवधारणा | अनुसंधान या शोध की परिभाषाएं

(Concept and Definitions of Research)

शोध, खोज, अन्वेषण, अनुसंधान वास्तव में एक ही वैज्ञानिक प्रक्रिया के पर्यायवाची हैं। इतिहास में शोध की प्रक्रिया के जनक प्रो. जे.बी. ब्यूरी थे। उनका मत था कि, “इतिहास एकाकी विज्ञान है न कम और न अधिक।” ब्यूरी के बाद, नेवूहर एवं राके (जर्मनी), ऐक्टन (ब्रिटेन), कार्ल बेकर (अमेरिका), रैने (फ्रांस) आदि ने भी इसका समर्थन किया और इतिहास में शोध की आधारशिला रखी। इन्होंने ऐतिहासिक शोध की आधुनिक विधाओं और आलोचना पद्धति की विधि प्रतिपादित की हैं।

19वीं शताब्दी में ऐतिहासिक शोध की वैज्ञानिक प्रणाली को परिपक्वता एवं प्रौढ़ता प्राप्त हुई। बर्नहॉम, आंग्लाय तथा सेनावास ने ऐतिहासिक अध्ययन की वैज्ञानिक प्रणाली के माध्यम से अतीत के अनेक मौलिक तथ्यों को अपने समसामयिक समाज के सम्मुख उद्घाटित किया।

कार्ल बेकर ने 1931 में अमेरिकन इतिहास परिषद के अपने अध्यक्षीय भाषण में इसकी व्याख्या करते हुए कहा था, “ऐतिहासिक शोध वह वैज्ञानिक विधा है जिसमें एक इतिहासकार केवल उन तथ्यों का चयन करता है जिसे उसका समाज महत्वपूर्ण बताता है और केवल उन प्रतिमानों को पाने का प्रयास करता है जिन्हें पाने के लिये उसका समाज निर्देशित करता है।”

लेकिन कार्ल बेकर के उक्त मत का खण्डन करते हुए बर्नहीम ने लिखा है, “शोध स्वयंमेव इतिहास नहीं, अपितु इतिहासकार द्वारा अपने लक्ष्य तक पहुँचने का एक साधन तथा प्रक्रिया है। अतएव शोध का अभिप्राय केवल समाज -निर्दिष्ट अतीत के अंतर्निहित प्रतिमानों को खोजना ही नहीं, अपितु इसके अतिरिक्त कुछ और भी है।”

शेकअली के अनुसार, ” शोध एक प्रक्रिया है जिसका अभिप्राय अतीत सम्बन्धी नीवन तथ्यों को प्रकाश में लाना तथा ज्ञान की सीमा को विस्तृत करता है।”

रेनियर के अनुसार, “शोधकर्ता का उद्देश्य नवीन तथ्यों की खोज करना, उपलब्ध तथ्यों का संशोधन करना तथा नवीन साक्ष्यों के आधार पर अतीत की घटना का यथार्थ एवं परिकल्पनात्मक प्रस्तुतिकरण होता है।”

एच.सी. हॉकेट का कहना है, “शोध का अभिप्राय अतीतकालिक घटना के सम्बन्ध में नवीन सूचना तथा विचार का प्रस्तुतिकरण होता है।”

शोध के उद्देश्य (शोध के उद्देश्यों का वर्णन)

(Objectives of Research)

शोध के तीन प्रमुख उद्देश्य हैं- (1) सैद्धान्तिक उद्देश्य, (2) व्यावहारिक उद्देश्य तथा (3) व्यक्तिगत उद्देश्य |

(1) सैद्धान्तिक उद्देश्य- शोध मूल रूप से ज्ञान की वृद्धि का साधक है। इस दृष्टि से शोध का सैद्धान्तिक उद्देश्य तथ्यों, घटनाओं अथवा समस्याओं के विषय में ज्ञान प्राप्त करना है जिससे पुराने तथ्यों का सत्यापन, नये तथ्यों की खोज, नये सिद्धान्तों का निर्माण तथा परीक्षण किया जाता है। इस प्रकार शोध के निम्नलिखित सैद्धान्तिक उद्देश्य हो सकते हैं-

(i) शोध का उद्देश्य प्रयोगों द्वारा सिद्ध तथ्यों के आधार पर अवधारणाओं की रचना करना है।

(ii) शोध द्वारा पुराने तथ्यों की जाँच एवं नवीन तथ्यों की जानकारी की जाती है।

(iii) शोध का उद्देश्य पूर्व स्थापित सिद्धान्तों की जाँच तथा परीक्षण करना है।

(iv) शोध का उद्देश्य घटना एवं तथ्यों के मध्य कार्य, कारण, सम्बन्ध को खोजना भी है।

(2) व्यावहारिक उद्देश्य- यद्यपि शोध का प्राथमिक उद्देश्य सैद्धान्तिक ज्ञान में अभिवृद्धि करना होता है तथापि उस ज्ञान का व्यावहारिक धरातल पर उपयोग न होने पर ऐसा शोध अर्थहीन हो जाता है। अतः शोध के व्यावहारिक उद्देश्य निम्नलिखित हैं-

(i) शोध के द्वारा सर्वोत्कृष्ट विकल्प की खोज की जाती है।

(ii) शोध के द्वारा भविष्य के लिये योजनाओं के निर्माण में सहायता मिलती है।

(iii) शोध का व्यावहारिक उद्देश्य सामाजिक एवं आर्थिक समस्याओं का समाधान करने में सहायक होना भी है।

(iv) शोध के द्वारा किसी घटना के स्वरूप व कारणों के बारे में गहन जाँच कर उस समस्या को नियन्त्रित करने में सहायता मिलती है।

(v) शोध के द्वारा विभिन्न चरों (Variables) में परस्पर सम्बन्ध स्थापित कर परिकल्पनाओं (Hypothesis) को स्वीकृत अथवा अस्वीकृत किया जाता है।

(vi) शोध राजकीय तथा आर्थिक नीतियों का आधार प्रदान करता है।

(vii) शोध व्यवसाय तथा उद्योग की क्रियात्मक तथा नियोजन सम्बन्धी समस्याओं का समाधान करने में सहायक होता है।

(viii) शोध के द्वारा सामाजिक सम्बन्धों तथा समस्याओं का समाधान ढूँढने की सहायता मिलती है।

(3) व्यक्तिगत उद्देश्य- यहाँ प्रश्न यह उठता है कि एक व्यक्ति अन्ततः शोध करने के लिये क्यों अभिप्रेरित होता है? इस प्रश्न के उत्तर में शोध के व्यक्तिगत उद्देश्य निम्नलिखित हो सकते हैं-

(i) शोध के आधार पर रोजगार तथा उन्नति प्राप्त, हो सकती है क्योंकि बहुत से ऐसे व्यवसाय हैं जिनमें प्रवेश करने के लिये एक व्यक्ति को शोध करना आवश्यक होता है।

(ii) एक व्यक्ति समाज सेवा की दृष्टि से भी शोध एवं अनुसन्धान कर सकता है।

(iii) शोध करने का व्यक्तिगत उद्देश्य समाज में सम्मान प्राप्त करना भी हो सकता है।

(iv) कुछ व्यक्ति रचनात्मक कार्य करने में आनन्द का अनुभव प्राप्त करते हैं।

(v) इसी प्रकार एक शोधकर्ता ऐसी समस्याओं का समाधान करने सम्बन्धी चुनौती स्वीकार करना उचित समझता है जिनका वर्तमान में कोई समाधान नहीं है।

(vi) सरकारी निर्देशों के आधार पर भी शोध करना अनिवार्य हो सकता है।

उद्देश्य के आधार पर शोध के प्रकार

उद्देश्य के आधार पर- उद्देश्य के आधार पर शोध निम्न प्रकार का हो सकता है-

(1) मौलिक सैद्धान्तिक शोध ( Fundamental, Pure or Basic, Research)- नये सिद्धान्तों का सूत्रपात अथवा पुराने सिद्धान्तों की समीक्षा तथा संशोधन मौलिक शोध का विषय है। इसमें ज्ञान प्राप्ति का उद्देश्य सामान्यीकरण के द्वारा सिद्धान्तों की व्याख्या करना होता है। मौलिक अनुसन्धान में यह भी देखा जाता है कि क्या परिवर्तित परिस्थितियों में पुराने सिद्धान्त उचित हैं अथवा नहीं। यदि पुराने सिद्धान्त वर्तमान सन्दर्भ में ठीक न हों तो उन्हें अस्वीकृत कर नये सिद्धान्तों का प्रतिपादन किया जाता है। वास्तव में मौलिक अनुसन्धान का उद्देश्य उपलब्ध ज्ञान में अभिवृद्धि कर उसे समष्टि (Universe) में प्रयुक्त करने योग्य बनाया है।

(2) व्यावहारिक शोध ( Applid Research)- व्यावहारिक शोध में मौलिक शोध से प्राप्त परिणामों को वास्तविक घटनाओं तथा परिस्थितियों पर लागू कर प्राप्त परिणामों के आधार पर निष्कर्ष ज्ञात किये जाते हैं। पी०वी० यंग के अनुसार, “ज्ञान की खेज का निश्चित सम्बन्ध लोगों की प्राथमिक आवश्यकताओं एवं कल्याण से होता है। वैज्ञानिक की मान्यता यह होती है कि समस्त ज्ञान मूलभूत रूप से इस अर्थ में उपयोग होता है कि वह इस सिद्धान्त के निर्माण में या एक कला को व्यवहार में लाने में सहायक होता है, सिद्धान्त और व्यवहार आगे जाकर एक- दूसरे में मिल जाते हैं।” इस प्रकार व्यावहारिक अनुसन्धान की संज्ञा उसे दी जाती है जिसमें ज्ञानक्षप्राप्ति मानवीय भाग्य के सुधार में सहायता प्रदान कर सके।

(3) क्रिया शोध ( Action Research)- एक ऐसा शोध क्रिया शोध कहलाता है जो किसी समस्या अथवा घटना के क्रिया पक्ष पर बल देता है। विकास की गति को बढ़ाने के लिए तथा अपूर्ण आवश्यकताओं की प्रभावपूर्ति के लिए क्रिया शोध आवश्यक है।

अनुसंधान क्रियाविधि – महत्वपूर्ण लिंक

  • शोध या अनुसन्धान की अवधारणा | शोध की विधि | शोध के स्रोत की विधि एवं महत्व
  • अनुसंधान या शोध प्रक्रिया | शोध प्रक्रिया के प्रमुख चरण | शोध की सीमायें
  • शोधकर्ता | शोधकर्ता के गुण | शोधकर्त्ता से आशय
  • अनुसन्धान के प्रकार | विशुद्ध या मौलिक अनुसन्धान | व्यावहारिक अनुसन्धान | अर्द्धसामाजिक अनुसन्धान | विशुद्ध और व्यावहारिक अनुसन्धान में अन्तर
  • अनुसंधान समस्या का चयन एवं निरूपण | अनुसंधान की अवस्थायें | समस्या का निरूपण एवं चयन की आवश्यकता
  • अनुसंधान समस्या का चयन करते समय ध्यान देने योग्य बातें | अनुसंधान-समस्या के चयन के मौलिक अधिकारों का विवरण

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Monday, October 26, 2020

क्रियात्मक अनुसंधान अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं, उद्देश्य,चरण और इतिहास action research meaning, types, definitions, objectives, stages and history.

kriyatmk-anusandhan Action Research Meaning, Types, Definitions, Objectives, Stages and History

 शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान  है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।स्टीफन  एम. कोरे

            विषय सूची

       TABLE OF CONTENT


क्रियात्मक अनुसंधान के प्रकार

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ

क्रियात्मक अनुसंधान का इतिहास और प्रयोग

क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य 

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र 

क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान

क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ

परिभाषाएंप्रकारप्रभावित करने वाले कारक

S-R Theory

 

क्रियात्मक अनुसंधान के   प्रकार

क्रियात्मक अनुसंधान के प्रकार

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ

क्रियात्मक अनुसंधान का इतिहास और प्रयोग

क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य .

4

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र 

क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान,   क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ.

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8 comments:

research ke types in hindi

OUTSTANDING SIR THANKS A LOT

Shiksha Mein kriyatmak Anusandhan karykartaon dwara Kiya jane wala Anusandhan Hai Taki vah Apne Karya Mein Sudhar kar Saken Stephen M Kore

बहुत ही उपयोगी पोस्ट है मेने भी यही से अपना कॉपी त्यार किया है

धन्यवाद

Nice information

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क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ, प्रकार, परिभाषाएं एवं उद्देश्य | action research meaning, types, definitions and objectives, क्रियात्मक अनुसंधान (action research).

क्रियात्मक अनुसंधान एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मौलिक समस्याओं का अध्ययन करके नवीन तथ्यों की खोज करना, जीवन सत्य की स्थापना करना तथा नवीन सिद्धान्तों का प्रतिपादन करना है। अनुसंधान एक सोद्देश्य प्रक्रिया है, जिसके द्वारा मानव ज्ञान में वृद्धि की जाती है। इसमें अनुसंधानकर्ता विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक स्वयं ही होते हैं। इस अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य विद्यालय की कार्यप्रणाली में संशोधन कर सुधार लाना है। क्रियात्मक अनुसंधान को संपादित करने में शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रबंधक और निरीक्षक वैज्ञानिक दृष्टिकोण अपनाते हैं। अनुसंधान के अंतर्गत तत्कालीन प्रयोग पर अधिक बल देते हैं।

Action Research Meaning

आधुनिक युग में जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में प्रगति लाने के लिए अनुसंधान कार्य को बहुत महत्व दिया जाता है. शिक्षा के क्षेत्र में आज अनेक ऐसी समस्याएं उत्पन्न हो गई हैं जिनका सामना शिक्षा से संबंधित प्रत्येक व्यक्तियों को करना पड़ता है. शिक्षा की विविध समस्याओं का समाधान करने के लिए और व्यवहारिक रूप से वांछित परिवर्तन करने के लिए शिक्षा क्षेत्र में भी शोध कार्य या अनुसंधान की आवश्यकता है.

इस दृष्टि से शिक्षा क्षेत्र में जो अनुसंधान कार्य होते हैं वह शिक्षण के सिद्धांत पक्ष को सबल बनाने में महत्वपूर्ण योगदान देते हैं, किंतु शिक्षा की क्रियात्मक या व्यावहारिक पक्ष में अनुसंधान कार्य से कोई विशेष लाभ नहीं हुआ. ऐसी स्थिति में एक ऐसी पद्धति की आवश्यकता का अनुभव किया गया जिसके फलस्वरूप विद्यालय से संबंधित समस्याओं का समाधान खोजा जा सके और विशिष्ट स्थिति में परिवर्तन और सुधार किया जा सके इन विचारों के फलस्वरुप क्रियात्मक अनुसंधान का महत्व बढ़ा.

क्रियात्मक अनुसंधान शिक्षक की समस्याओं के समाधान के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण उपकरण है. इसके अंतर्गत शिक्षण की समस्याओं का वैज्ञानिक विधि से समाधान खोजा जाता है. क्रियात्मक अनुसंधान विद्यालय के कार्य पद्धति में विकास करने का एक सबल साधन है. इसके माध्यम से शिक्षक अपनी कक्षा तथा विद्यालय के समस्याएं सुलझाने का प्रयत्न करता है. आज शिक्षा के क्षेत्र में नए-नए अनुसंधान होते जा रहे हैं जिनका उद्देश्य शिक्षा को उत्तम बनाना है और शिक्षा संबंधित समस्याओं को सुलझाना है. क्रियात्मक अनुसंधान, अनुसंधान की प्रक्रिया को गति प्रदान करता है. क्रियात्मक अनुसंधान समस्याओं के अध्ययन की वैज्ञानिक पद्धति है, जो ज्ञान की खोज के लिए किया जाता है.

वास्तव में यह निरंतर गहरी तथा सौद्देश्य प्रक्रिया है, जो सत्य की खोज करती है. साथ ही साथ उसका लक्ष्य उन्नति एवं उत्तम करने मे सहायक है. अतः कहा जा सकता है कि अनुसंधान एक क्रमबद्ध वैज्ञानिक, वस्तुनिष्ठ तथा सौद्देश्य क्रिया है, जिसका प्रमुख ध्येय ज्ञान के क्षेत्र में वृद्धि करना, सत्यता की पुष्टि करना तथा नए तथ्यों, सत्यों एवं सिद्धांतों का निर्माण और प्रतिपादन करना होता है. शैक्षिक अनुसंधानों का अंतिम लक्ष्य शिक्षण नियमों तथा उनकी पुष्टि करना होता है.

क्रियात्मक अनुसंधान का अर्थ एवं परिभाषाएँ (Meaning and Definitions of Action Research)

विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों द्वारा अपनी और विद्यालय की समस्याओं का वैज्ञानिक अध्ययन करके अपनी क्रियाओं और विद्यालय की गतिविधियों में सुधार लाना क्रियात्मक अनुसंधान कहलाता है। इसकी कुछ परिभाषाएँ निम्नलिखित हैं:-

1. मेक ग्रेथटे के अनुसार, "क्रियात्मक अनुसंधान व्यवस्थित खोज की क्रिया है जिसका उद्देश्य व्यक्ति समूह की क्रियाओं में रचनात्मक सुधार तथा विकास लाना है।"

2.स्टीफन एम. कोरे के अनुसार, “शिक्षा में क्रियात्मक अनुसंधान, कार्यकर्ताओं द्वारा किया जाने वाला अनुसंधान है ताकि वे अपने कार्यों में सुधार कर सकें।"

3. मुनरो के अनुसार, "अनुसंधान समस्याओं को सुलझाने की वह विधि है, जिसमें सुझावों की पुष्टि तथ्यों द्वारा की जाती है।"

4. मौले के अनुसार, "शिक्षक के समक्ष उपस्थित होने वाली समस्याओं में से अनेक तत्काल ही समाधान चाहती है। मौके पर किये जाने वाले ऐसे अनुसंधान जिसका उद्देश्य तात्कालिक समस्या का समाधान होता है, शिक्षा में साधारणतः क्रियात्मक अनुसंधान के नाम से प्रसिद्ध है।"

क्रियात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य (Objectives of Action Research)

  • विद्यालय की कार्य प्रणाली में सुधार तथा विकास करना। 
  • छात्रों तथा शिक्षकों में प्रजातन्त्र के वास्तविक गुणों का विकास करना। 
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं, शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक तथा निरीक्षकों में वैज्ञानिक दृष्टिकोण का विकास करना।
  • विद्यालय के कार्य-कर्ताओं में कार्य कौशल का विकास करना।
  • शैक्षिक प्रशासकों तथा प्रबन्धकों को विद्यालयों की कार्य प्रणाली में सुधार तथा परिवर्तन के लिये सुझाव देना।
  • विद्यालय की परम्परागत रूढ़िवादिता तथा यान्त्रिक वातावरण को समाप्त करना।
  • विद्यालय की कार्य प्रणाली को प्रभावशली बनाना।
  • छात्रों के निष्पत्ति स्तर को ऊँचा उठाना।

क्रियात्मक अनुसन्धान का क्षेत्र (Scope of Action Research)

क्रियात्मक अनुसन्धान को विद्यालय की कार्य प्रणाली के अधोलिखित क्षेत्रों में प्रयोग किया जाता है:-

  • कक्षा शिक्षण विधियों एवं युक्तियों में सुधार लाना है।
  • शिक्षण में प्रयुक्त होने वाली सहायक सामग्री जिसकी उपयोगिता के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिये इसका प्रयोग करते हैं।
  • छात्रों की अभिरूचि, ध्यान, तत्परता तथा जिज्ञासा में वृद्धि के लिये इसे प्रयुक्त करते हैं।
  • शिक्षकों द्वारा विभिन्न विषयों में दिये जाने वाले गृह कार्यों की प्रणाली को प्रभावशाली बनाने के लिये इसे प्रयोग करते हैं। 
  • छात्रों की अनुसन्धान सम्बन्धी समस्याओं के समाधान के लिये इस प्रयुक्त करते हैं। 
  • भाषा शिक्षण में वर्तनी तथा वाचन की समस्याओं के लिये तथा भाषाई शुद्धि के लिए भी क्रियात्मक-अनुसन्धान को प्रयुक्त किया जाता है। 
  • छात्रों की अनुपस्थिति तथा विद्यालय विलम्ब से आने की समस्याओं के समाधान में इसे प्रयोग करते है। 
  • छात्रों एवं शिक्षक सम्बन्धी समस्याओं तथा छात्रों में परस्पर आदान-प्रदान की समस्याओं के लिये प्रयुक्त करते हैं।
  • परीक्षा में छात्रों के नकल करने की समस्याओं के समाधान में प्रयोग करते हैं।
  • विद्यालय के संगठन एवं प्रशासन से संबंधित समस्याओं के समाधान हेतु प्रयोग करते हैं।

क्रियात्मक अनुसंधान के चरण/सोपान (Steps of Action Research)

  • समस्या का चयन
  • उपकल्पना का निर्माण
  • तथ्य संग्रहण की विधियाँ
  • तथ्यों का संकलन
  • तथ्यों का सांख्यिकीय विश्लेषण
  • तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष
  • सत्यापन
  • परिणामों की सूचना

एण्डरसन ने क्रियात्मक अनुसंधान के निम्न सात चरण बताये हैं:-

1. पहला सोपान (समस्या का ज्ञान):- क्रियात्मक-अनुसंधान का पहला सोपान है– विद्यालय में उपस्थित होने वाली समस्या को भली-भाँति समझना। यह तभी सम्भव है, जब विद्यालय के शिक्षक, प्रधानाध्यापक, प्रधानाचार्य आदि उसके सम्बन्ध में अपने विचार व्यक्त करें। ऐसा करके ही वे वास्तविक समस्या को समझकर अपने कार्य में आगे सुधार करना चाहते हैं।

2. दूसरा सोपान (कार्य के लिए प्रस्तावों पर विचार विमर्श):- क्रियात्माक-अनुसंधान का दूसरा सोपान है– समस्या को भली-भांति समझने के बाद इस बात पर विचार करना कि उसके कारण क्या हैं और उसका समाधान करने के लिए हमें कौन-से कार्य करने हैं। शिक्षक, प्रधानाचार्य, प्रबन्धक आदि इन कार्यों के सम्बन्ध में अपने-अपने प्रस्ताव या सुझाव देते हैं। उसके बाद वे अपने विश्वासों, सामाजिक मूल्यों, विद्यालयों के उद्देश्यों आदि को ध्यान में रखकर उन पर विचार-विमर्श करते हैं।

3. तीसरा सोपान (योजना का चयन व उपकल्पना का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसन्धान का तीसरा सोपान है- विचार-विमर्श के फलस्वरूप समस्या का समाधान करने के लिए एक योजना का चयन और उपकल्पना का निर्माण करना। इसके लिए विचार-विमर्श करने वाले सब व्यक्ति संयुक्त रूप से उत्तरदायी होते हैं। उपकल्पना में तीन बातों का सविस्तार वर्णन किया जाता है—

  • समस्या का समाधान करने के लिए अपनाई जाने वाली योजना,
  • योजना का परीक्षण,
  • योजना द्वारा प्राप्त किया जाने वाला उद्देश्य।

4. चौथा सोपान (तथ्य संग्रह करने की विधियो का निर्माण):- क्रियात्मक-अनुसंधान का चौथा सोपान है– योजना को कार्यान्वित करने के बाद तथ्यों या प्रमाणों का संग्रह करने की विधियाँ निश्चित करना—इन विधियों की सहायता से जो तथ्य संग्रह किये जाते हैं, उनसे यह अनुमान लगाया जाता है कि योजना का क्या प्रभाव पड़ रहा है।

6. छठा सोपान (तथ्यों पर आधारित निष्कर्ष):- क्रियात्मक अनुसंधान का छठा सोपान है– योजना की समाप्ति के बाद संग्रह किए हुए तथ्यों या प्रमाणों से निष्कर्ष निकालना।

7. सातवाँ सोपान (दूसरे व्यक्तियों को परिणामों की सूचना):- क्रियात्मक-अनुसंधान का सातवाँ और अन्तिम सोपान है– दूसरे व्यक्तियों को योजना के परिणामों की सूचना देना।

क्रियात्मक अनुसंधान के लाभ (Benefits of Action Research)

  • इससे शिक्षक अपनी कक्षा के वातारण में अपनी कार्यप्रणाली में सुधार तथा प्रगति करता है। 
  • शिक्षक शोध के पदों से परिचित होता है। 
  • शिक्षकों में वैज्ञानिक-प्रवृत्ति, शोध कार्य के लिए जाग्रत होती है।
  • इसके द्वारा विद्यालय के प्रशासन में सुधार तथा परिवर्तन लाया जाता है। 
  • यह विद्यालय से संबंधित व्यक्तियों की विभिन्न दैनिक समस्यओं का व्यावहारिक एवं तथ्यपूर्ण समाधान करता है।
  • यह विद्यालय को आधुनिक तथा समयानुकूल बनाने का प्रयास करता है। 
  • इसके द्वारा प्राप्त निष्कर्ष व्यवहारिक रूप से काफी सफल होते हैं।
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अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा | अनुसंधान प्ररचना के प्रकार | Research Design in Hindi

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुक्रम (Contents)

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा

अनुसंधान प्ररचना का अर्थ एवं परिभाषा- अनुसंधान प्ररचना शब्द समझने के लिये पहले ‘अनुसंधान’ तथा ‘प्ररचना’ शब्दों का अर्थ समझ लेना जरूरी है। सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य के अनुसार “सामाजिक अनुसंधान का अर्थ सामाजिक घटनाओं तथा तथ्यों के बारे में नवीन जानकारी प्राप्त करना है अथवा पूर्व अर्जित ज्ञान में संशोधन, सत्यापन एवं संवर्द्धन करना है। एकोफ (Ackoff) ने प्ररचना शब्द की व्याख्या उपमा (Analogy) द्वारा की है। एक भवन निर्माणकर्ता भवन की प्ररचना पहले से ही बना लेता है कि यह कितना बड़ा होगा, इसमें कितने कमरे होगें, कौन सी सामग्री का प्रयोग इसमें किया जायेगा इत्यादि। ये सब निर्णय वह भवन निर्माण से पहले ही ले लेता है ताकि भवन के बारे में एक ‘नक्शा’ बना ले तथा यदि इसमें किसी प्रकार का संशोधन करना है तो निर्माण शुरु होने से पहले ही किया जा सके। ‘प्ररचना का अर्थ योजना बनाना है, अर्थात प्ररचना पूर्व निर्णय लेने की प्रक्रिया है ताकि परिस्थिति पैदा होने पर इसका प्रयोग किया जा सके। यह सूझ-बूझ एवं पूर्वानुमान की प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य अपेक्षित परिस्थिति पर नियंत्रण रखना है।” इस प्रकार यह कहा जा सकता है कि अनुसंधान की समस्या तथा उसमें प्रयुक्त होने वाली प्रविधियों पर नियंत्रण करने के लिये पूर्व निर्धारित निर्णयों की रूपरेखा ही अनुसंधान प्ररचना है।

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सैल्टिज जहोदा तथा अन्य के अनुसार, जब अनुसंधानकर्ता ने समस्या का निर्माण कर लिया है। तथा यह निर्धारण कर लिया है कौन सी सामग्री उसे एकत्रित करनी है तो उसे अनुसंधान प्ररचना बनानी चाहिये। इनके अनुसार अनुसंधान प्ररचना आँकड़ों के संकलन तथा विश्लेषण की दशाओं की उस व्यवस्था को कहते हैं जिसका लक्ष्य अनुसंधान के उद्देश्य की प्रासंगिकता तथा कार्यविधि की मितव्ययिता का। समन्वय करना है। एकोफ, सैल्टिज, जहोदा तथा अन्य विद्वानों के विचारों से यह स्पष्ट हो जाता है कि अनुसंधान प्ररचना पूर्व निर्णय की एक प्रक्रिया है जिसका उद्देश्य मितव्ययिता के आधार पर समस्या से सम्बन्धित आँकड़े एकत्रित करना और आने वाले परिस्थितियों को नियंत्रित करना है। साथ ही अनुसंधान के लक्ष्य के आधार पर भिन्न प्रकार की प्ररचनायें बनायी जा सकती हैं। अतः अनुसंधान प्ररचना इनसे सम्बन्धित सर्वाधिक उपयुक्त एवं सुविधाजनक योजना है। जिसका उद्देश्य अनुसंधानकर्ता को दिशा प्रदान करना तथा मानव-श्रम की बचत करना है। सम्पूर्ण अनुसंधान प्ररचना को मुख्य रूप से चार भागों में विभाजित किया जा सकता है –

1. निदर्शन प्ररचना (Sampling Design) – इसमें अध्ययन की प्रकृति के अनुसार निदर्शन की इकाइयों के आकार तथा निदर्शन की पद्धति के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है।

2. अवलोकनात्मक प्ररचना (Observational Design) – इसमें उन दशाओं के बारे में पूर्व निर्णय लिया जाता है जिनके अन्तर्गत अवलोकन किया जाना है अथवा अन्य किसी प्रविधि द्वारा सामग्री संकलित की जानी है।

3. सांख्यिकीय प्ररचना (Statistical Design) – इसका सम्बन्ध संकलित सामग्री के सांख्यिकीय विश्लेषण से है अर्थात यह पूर्व निर्णय लेने से है कि सामग्री के विश्लेषण हेतु किन-किन सांख्यिकीय प्रविधियों का प्रयोग किया जायेगा।

4. संचालन प्ररचना (Operational Design)- इसका सम्बन्ध उन प्रविधियों के बारे में पूर्व निर्णय लेने से है। जिनके द्वारा उपर्युक्त तीनों प्ररचनाओं अर्थात निदर्शन प्ररचना अवलोकनात्मक प्ररचना तथा सांख्यिकीय प्ररचना सम्बन्धी कार्यप्रणालियों को लागू किया जाना है। संचालन प्ररचना द्वारा ही अन्य तीनो प्ररचनाओं में समन्वय स्थापित करने का प्रयास किया जाता है।

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अतः विद्वानों ने अनुसंधान प्ररचना के कुछ विभिन्न प्रकारों का उल्लेख किया है जोकि निम्नलिखित हैं-

अनुसंधान प्ररचना के प्रकार (Types of Research Design)

अनुसन्धान प्ररचना के प्रकार अनुसन्धान प्ररचना या अनुसन्धान अभिकल्प को चार भागों में विभाजित किया गया है-

1. अन्वेषणात्मक अथवा निरूपणात्मक अनुसंधान अभिकल्प या प्ररचना

जब किसी अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किन्ही सामाजिक घटनाओं में अन्तर्निहित कारणों को ढूंढ निकालना होता है तो उससे सम्बन्धित रूपरेखा को अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं। इस प्रकार के अनुसंधान अभिकल्प में शोध कार्य की रूपरेखा इस तरीके से प्रस्तुत की जाती है कि घटना की प्रकृति व धारा प्रवाहों की वास्तविकताओं की खोज की जा सके। विषय अथवा समस्या के चुनाव के पश्चात् प्राक्कल्पना का 5 सफलतापूर्वक निर्माण करने के लिए इस प्रकार के अभिकल्प का अत्यधिक महत्व है क्योंकि इसकी सहायता से हमारे लिए विषय का कार्य-कारण सम्बन्ध स्पष्ट हो जाता है। उदाहरण के लिए, यदि हमें किसी विशेष सामाजिक परिस्थिति में विवाह-विच्छेद प्राप्त व्यक्तियों में व्याप्त यौन व्यभिचार के विषय में अध्ययन करना है, तो उसके लिए सर्वप्रथम उन कारकों का ज्ञान आवश्यक है जो कि उस प्रकार के व्यभिचार को पैदा करते हैं। अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प इन्ही कारणों को खोज निकालने की एक योजना बन सकती है। इसी तरह से कभी-कभी समस्या के चुनाव तथा अनुसन्धान कार्य के लिए उसकी उपयुक्तता के सम्बन्ध में हमें अन्य किसी स्रोत से ज्ञान प्राप्त नहीं हो पाता है, तब उस अवस्था में अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प की सहायता से हमें बहुत सहायता मिल सकती है। इस प्रकार की अनुसन्धान अभिकल्प की सफलता के लिए कुछ अनिवार्यताओं का पालन करना होता है जो निम्नलिखित है-

(अ) सम्बद्ध साहित्य का अध्ययन

(ब) अनुभव सर्वेक्षण

(स) अन्तर्दृष्टि प्रेरक घटनाओं का विश्लेषण।

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2. वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

विषय या समस्या के सम्बन्ध में सम्पूर्ण वास्तविक तथ्यों के आधार पर उनका विस्तृत वर्णन करना ही वर्णनात्मक अनुसन्धान अभिकल्प का प्रमुख उद्देश्य है। इस पद्धति में आवश्यक है कि हमें वास्तविक तथ्य प्राप्त हो तभी हम उसकी वैज्ञानिक विवेचना करने में सफल हो सकते हैं। यदि समाज की किसी समस्या का विवरण देना है, तो उस समस्या के विभिन्न पक्षों से सम्बन्धित तथ्य प्राप्त होने चाहिए, जैसे निम्न श्रेणी के परिवारों का विवरण देना है, तो उसकी आयु, सदस्यों की संख्या, शिक्षा का स्तर व्यावसायिक ढाँचा, जातीय और पारिवारिक संरचना आदि से सम्बन्धित तथ्य, जब तक प्राप्त नहीं होते तब तक हम उसके वास्तविक स्वरूप को प्रस्तुत नहीं कर सकते। इस उद्देश्य की प्राप्ति के लिए यह आवश्यक है कि हम अपना अनुसंधान अभिकल्प विषय के उद्देश्य के अनुसार बनायें।

3. परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प

भौतिक विज्ञानों की तरह समाजशास्त्र भी अपने अनुसन्धान कार्यों में परीक्षण प्रणाली का उपयोग कर अधिकाधिक यथार्थता लाने का प्रयत्न कर रहा है। भौतिक विज्ञानों में जिस तरह कुछ नियन्त्रित अवस्थाओं में रखकर विषय का अध्ययन किया जाता है, उसी में प्रकार नियन्त्रित दशाओं में रखकर निरीक्षण परीक्षण के द्वारा सामाजिक घटनाओं का व्यवस्थित अध्ययन करने रूपरेखा को परीक्षणात्मक अनुसन्धान अभिकल्प कहते हैं।

4. निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना

अनुसन्धान कार्य का मूलभूत उद्देश्य ज्ञान प्राप्ति एवं ज्ञान की वृद्धि करना है। किन्तु यह भी सम्भव है कि अनुसन्धान कार्य का उद्देश्य किसी समस्या के कारणों के सम्बन्ध में वास्तविक ज्ञान प्राप्त करके उस समस्या के समाधानों को भी प्रस्तुत करना हो। इस प्रकार के अनुसन्धान अभिकल्प को निदानात्मक अनुसन्धान अभिकल्प / प्ररचना कहते हैं। दूसरे शब्दों में में, विशिष्ट सामाजिक समस्या के निदान की खोज करने वाले अनुसन्धान कार्य को, निदानात्मक अनुसन्धान कहते हैं।

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शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र

Table of Contents

शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र (Nature and Scope of Educational Research)

जॉर्ज जी मॉर्टे   ने शिक्षा की एक वैज्ञानिक पद्धति से व्याख्या की है और शैक्षिक अनुसंधान को विशेष महत्व दिया है। उन्होंने शिक्षा को वैज्ञानिक स्वरूप देने के लिए इसकी समस्याओं, आधुनिकीकरण या संवर्धन के लिए नियोजित अनुसंधान करने को कहा है। शैक्षणिक व्यवस्था के विस्तार का उद्देश्य छात्रों को बेहतर शिक्षा देना है।

इसलिए बेहतर शिक्षा का विकास शिक्षा की पद्धतियों को व्यवस्थागत स्वरूप देने, शिक्षण पद्धति को विकसित करने, प्रशासन, निरीक्षण से सुनिश्चित होता है। अनुसंधान मानव क्रियाओं का महत्वपूर्ण अंग है।

किसी भी विशेष अनुसंधान से हम जीवन के किसी क्षेत्र विशेष में प्रगति कर सकते हैं। मानव में स्थायी विकास की सभ्यता के विकास के साथ ही जिज्ञासा की प्रवृत्ति में उत्तरोत्तर वृद्धि प्राप्त होती है। मानव का प्रथम प्रयास प्रकृति के रहस्यों को ज्ञात करने का था, जिसमें काफी अधिक सफल नहीं हो सके। किंतु इन रहस्यों के स्थायी पहचान पर मानव ने ध्यान देना शुरू कर दिया।

आग और हथियारों की खोज से मनुष्य ने शक्ति अर्जित करने में सफलता हासिल की। इसी क्रम में हमें बोली का विकास और रहस्यों को समझने के लिए शिक्षा का विकास मिलता है। प्रकृति के रहस्यों को लेकर अपने अनुसंधान को मानव ने शिक्षा के माध्यम से ही आने वाली पीढ़ी को सौंपा।

वर्तमान समय में अनुसंधान और नई खोजों से हमने शिक्षा के क्षेत्र में व्यापक विस्तार कर लिया है और यह प्रक्रिया सतत जारी है। लगातार नई अवधारणा, नए रास्तों की तलाश से हमारा जीवन सुगम हुआ है और शिक्षा के क्षेत्र में एक क्रांति आई है। वास्तव में अनुसंधान के तीन महत्वपूर्ण कारक हैं-

1. अनुसंधान को पूछताछ की प्रवृत्ति कहा जा सकता है। इसमें किसी विषय के सभी आयामों को सैद्धान्तिक रूप नहीं दिया जाता है बल्कि आवश्यक तथ्यों को ज्ञात करने की कोशिश की जाती है। 2. व्यवस्थागत व शोधार्थ क्रियाकलाप का अनुसंधान एक वैज्ञानिक पद्धति है। जैसे कि हम वैज्ञानिक पद्धति में उपकरणों व चरणबद्ध तकनीकों का प्रयोग कर किसी निष्कर्ष पर पहुंचते हैं, उसी प्रकार अनुसंधान से हम शिक्षा के नए आयाम की तलाश करते हैं । 3. अनुसंधान आवश्यक रूप से मस्तिष्क की एक विशेष अवस्था है, जो परिवर्तन के प्रति मित्रवत व आग्राही विचार रखता है। परंपरागत पद्धतियों में बदलाव लाने, उनमें एक नए प्रकार का रास्ता तलाश करने, नए तथ्यों की खोज करने में शोधकर्ता की अत्यंत दिलचस्पी होती है।

शैक्षिक अनुसंधान का स्वरूप एवं विषय क्षेत्र

अनुसंधान को निम्नलिखित भागों में बांटा गया है-

आधारभूत अनुसंधान (Fundamental or Basic Research)

आधारभूत अनुसंधान से हमें किसी भी विषय में गहन विश्लेषण के बाद सामान्यीकरण करने और अनुसंधान की विभिन्न पद्धतियों से प्राप्त प्रदत्तों से प्राप्त करते हैं। यथा- नमूना एकत्र करना, प्राथमिक प्रदत्तों का विश्लेषण करना। सामान्य रूप से हम कह सकते हैं कि अनुसंधान की इस पद्धति में हम व्यवस्थित कार्य से खोज की तरफ अग्रसर होते हैं जो हमें एक व्यवस्थित निकाय विकसित करने में सहायक होता है और इससे हम वैज्ञानिक ज्ञान प्राप्त करते हैं।

व्यवहृत या अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research)

आधारभूत अनुसंधान में जहाँ हम सिद्धांतों को प्राप्त करते हैं, वही हम क्रियात्मक अनुसंधान में प्राप्त सिद्धांतों के प्रयोग की संभावना ज्ञात करते हैं। कार्यरूप में शोधकर्ता क्षेत्र अध्ययन के दौरान नियमों का आकलन करता है और उन्हें व्यवहारिक रूप देकर किसी समस्या का हल प्राप्त करने में प्रयुक्त करता है। इसे किसी त्वरित समस्या को हल करने के लिए भी प्रयोग में लाया जाता है।

क्रियात्मक अनुसंधान (Action Research)

यह किसी सिद्धान्त की स्थापना के लिए नहीं  किया जाता है, बल्कि त्वरित समस्या के निवारण के लिए प्रयोग में लाया जाता है। त्वरित निवारण अनुसंधान में पूर्व के प्रयोग, स्थापित मानदंड, प्रदत्त महत्वपूर्ण फीडबैक का कार्य करते हैं । इसी तरह शैक्षिक अनुसंधान को तीन भागों में विभाजित किया जा सकता है-

(i) ऐतिहासिक अनुसंधान (Historical Research) (ii) वस्तुनिष्ठ अनुसंधान (Descriptive Research) (iii) प्रायोगिक अनुसंधान (Experimental Research)

ऐतिहासिक अनुसंधान में भूतकाल की व्याख्या की जाती है। इसमें प्राचीन अनुभवों का गहन विवेचन, विश्लेषण कर निष्कर्ष तक पहुंचने की कोशिश की जाती है और समस्याओं के सामान्यीकरण से हल निकाला जाता है। यह अनुसंधान पद्धति बहुत हद तक भूत और वर्तमान को समझने के साथ-साथ भविष्य का अनुमान लगाने में मददगार साबित होता है।

जबकि वस्तुनिष्ठ अनुसंधान में हमें किसी समस्या का भूत ज्ञात होता है। विभिन्न आंकड़ों की विवेचना, विश्लेषण और निष्कर्षों से हम नए अनुसंधान की तरफ बढ़ते हैं।

वही प्रायोगिक अथवा प्रयोगात्मक अनुसंधान में किसी विशेष वैरिएबल को नियंत्रित कर निष्कर्षों का अध्ययन करते हैं। अनुसंधान की इस पद्धति में वैरिएबल के संबंधों पर ध्यान दिया जाता है।

एल. वी. रेडमन (L.V.Redman) ने “Encyclopedia of Social Science” में परिभाषा इस प्रकार दी है,” अनुसंधान नवीन ज्ञान प्राप्त करने के लिए एक व्यवस्थित प्रयास है।”

पी. एम. कुक (P.M. Cook) के अनुसार, “किसी समस्या के संदर्भ में ईमानदारी, विस्तार तथा बुद्धिमानी से तथ्यों, उनके अर्थ तथा उपयोगिता की खोज करना ही अनुसंधान है।”

एम. एम. ट्रेवर्स (M.M. Traverse) के अनुसार, “शैक्षिक अनुसंधान वह प्रक्रिया है, जो शैक्षिक परिस्थितियों में एक व्यवहार संबंधी विज्ञान के विकास की ओर अग्रसर होती है।”

सी. सी. क्रोफोर्ड (C.C. Crowford) के अनुसार, “ अनुसंधान किसी समस्या के अच्छे हेतु क्रमबद्ध तथा विशुद्ध चिन्तन एवं विशिष्ट उपकरणों के प्रयोग की एक विधि है।”

डॉ. एम. वर्मा के अनुसार, “अनुसंधान एक बौद्धिक प्रक्रिया है, जो नए ज्ञान को प्रकाश में लाती है अथवा पुरानी त्रुटियों एवं भ्रान्तधारणाओं का परिमार्जन करती है, तथा व्यवस्थित रूप से वर्तमान ज्ञान-कोष में वृद्धि करती है।”

पारस नाथ राय व चाँद भटनागर के अनुसार, “अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य वैज्ञानिक विधियों द्वारा विशिष्ट प्रश्नों का उत्तर अथवा विशिष्ट समस्याओं का समाधान प्राप्त करना है। इस उत्तर की प्राप्ति के लिए विशेष विधियों का विकास किया जाता है जिनसे इस बात की सम्भावना बढ़ जाती है कि प्राप्त जानकारी न केवल पूछे गए प्रश्नों से सम्बन्धित है अपितु वह विश्वसनीय भी है। वैज्ञानिक अनुसंधान की एक अन्य विशेषता यह है कि वह सदा ही किसी प्रश्न या समस्या के रूप में उत्पन्न होता है।”

अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण बौद्धिक क्रिया है। इसमें किसी सैद्धान्तिक या व्यवहारिक समस्या के समाधान का प्रयास होता है और अनुसंधान की समस्या सीमांकित (Delimited) होती है। इसके अंतर्गत किसी नए सत्य की खोज, पुराने सत्यों का नए ढंग से प्रस्तुतीकरण अथवा प्रदत्तों में व्याप्त नए सम्बन्धों का स्पष्टीकरण होता है।

यह प्रक्रिया वैज्ञानिक होती है, इसमें प्रदत्तों (Dates) प्राप्त करने हेतु, विश्वसनीय (Reliable) तथा वैध (Valid) तथा वस्तुनिष्ठ वैज्ञानिक उपकरणों (Tools) का प्रयोग होता है। इसमें प्राकल्पनाओं (Hypothesis) का निर्माण और उनका वैज्ञानिक ढंग से परीक्षण होता है । प्रदत्तों के विश्लेषण (Analysis) हेतु सांख्यिकीय, (Statistical) विधियों का प्रयोग होता है। साथ में प्राप्त निष्कर्ष पूर्ण रूप से प्रदत्तों के विश्लेषण पर ही आधारित होते हैं। सम्पूर्ण प्रक्रिया का वास्तविक प्रतिवेदन (Repent) प्रस्तुत किया जाता है जिससे अन्य लोग भी उसकी परीक्षा एवं सत्यापन कर सकें ।

डॉ. बी. बी. पाण्डेय ने कहा है, अनुसंधान प्रक्रिया के द्वारा प्रदत्तों के विश्लेषण के आधार पर किसी समस्या का विश्वसनीय समाधान ज्ञात किया जाता है।……इसमें नवीन तथ्यों की खोज की जाती है एवं नवीन सत्यों या तथ्यों का प्रतिपादन किया जाता है तथा साथ ही साथ प्राचीन तथ्यों तथा प्रत्ययों का नवीन अर्थामत या व्याख्या (New interpretation) भी किया जाता है।”

अनुसंधान के अंतर्गत किसी तथ्य को बार-बार सम्बन्धित प्रदत्तों के आधार पर देखने या खोजने का प्रयास किया जाता है एवं निष्कर्ष निकाला जाता है। मूल रूप से अनुसंधान का अर्थ (Enquiry) से सम्बन्धित रहा है किन्तु धीरे-धीरे निरन्तर इसका संशोधन और विकास होता गया है ।

डॉ. पारसनाथ राय के अनुसार यह शिक्षा से स्वस्थ दर्शन पर आधारित है। यह सूझ तथा कल्पना पर आधारित है। इसमें अंतर-वैज्ञानिक (Inter-disciplinary) पद्धति का प्रयोग होता है। इसमें प्रायः निगमनात्मक तर्क पद्धति का प्रयोग होता है। यह शिक्षा-क्षेत्रों में सुधार करता है तथा उसके विकास की समस्याओं का समाधान करता है। शैक्षिक अनुसंधान में उतनी सीमा तक शुद्धता नहीं होती जितनी प्राकृतिक विज्ञानों में होती है। यह केवल विशेषज्ञों द्वारा ही नहीं किया जाता अपितु शिक्षक, प्रधानाचार्य, निरीक्षक, प्रशासक आदि के द्वारा किया जाता है।

शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र (Scope of Education Research)

शैक्षिक अनुसंधान के क्षेत्र शिक्षा-दर्शन, शैक्षिक उद्देश्यों का निर्धारण, उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु नियोजन, व्यवस्थापन, संचालन, समायोजन, व्यवस्था, शिक्षण-विधि, अधिगम व उसे प्रभावित करने वाले तत्त्व, प्रशासन, पर्यवेक्षण, मूल्यांकन आदि। इनके अतिरिक्त शिक्षक संबंध, पाठ्यक्रम, पाठ्यपुस्तक, सहायक-सामग्री आदि।

अनुसंधान की आवश्यकता (Need and Significance)

शैक्षिक अनुसंधान शैक्षिक समस्याओं के समाधान में इस प्रकार सहायक है : 1. ज्ञान के विकास में सहायक – गुड व स्केट्स (Good & Scates) का मत है, “विज्ञान का कार्य बुद्धि का विकास करना है तथा अनुसंधान का कार्य विज्ञान का विकास करना है।” 2. अनुसंधान उद्देश्य प्राप्ति का सर्वोत्तम साधन है -शैक्षिक अनुसंधान एक उद्देश्यपूर्ण प्रक्रिया है जो शिक्षा के उद्देश्यों की प्राप्ति में अत्यन्त सहायक है । 3. समाज-परिवर्तन की मन्द गति को तीव्र बनाने में सहायक है -अनुसंधान द्वारा नवीन आविष्कारों से समाज परिवर्तन की प्रक्रिया में शिक्षा सहायक होती है । 4. राष्ट्रीय एवं अन्तर्राष्ट्रीय भावना के विकास में सहायक -शैक्षिक अनुसंधान के अंर्तगत लोकहितकारी भावनाओं का समन्वय होता है जिससे वह राष्ट्रीय व अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव के विकास में सहायक होता है। 5. शैक्षिक अनुसंधान व उद्देश्यों की प्राप्ति हेतु सरल उपाय बतलाता है -अतः इसकी आवश्यकता एवं महत्व बना रहता है। 6. अनुसंधान सुधार प्रक्रिया में सहायक होता है क्योंकि वह वैज्ञानिक होने के कारण रूढ़िगत विचारों व व्यवहारों में सुधार लाता है । 7. यह सत्य-ज्ञान की खोज की उत्सुकता शान्त करता है -विज्ञान सम्मत होने का कारण शैक्षिक अनुसंधान सत्य की खोज में सहायक होता है। 8. प्रशासनिक क्षेत्र में सहायक -प्रशासन की अनेक समस्याओं के समाधान द्वारा उसे प्रभावी बनाता है । 9. अध्यापक के लिए अपरिहार्य -क्योंकि अध्यापन में आ रही अनेक कठिनाइयाँ व समस्याएं क्रियात्मक अनुसंधान द्वारा हल हो जाती है। अतः यह शिक्षक के लिए अत्यन्त आवश्यक और महत्त्वपूर्ण है। 10. विभिन्न विज्ञानों की प्रगति में सहायक -अनुसंधान भौतिक एवं सामाजिक सभी विज्ञानों की प्रगति में सहायक होता है। 11. व्यवहारिक समस्याओं का मूल स्रोत -शिक्षा क्षेत्र की व्यावहारिक समस्याओं का “क्रिया अनुसंधान” (Action research) जैसी अनुसंधान विधियों द्वारा समाधान मिलता है। 12. पूर्वग्रहों का निदान व निवारण -शैक्षिक अनुसंधान द्वारा शिक्षा क्षेत्र में व्याप्त अनेक हानिकारक पूर्वग्रहों व मान्यताओं का पता लगाकर उन्हें किया जा सकता है ।

डॉ. बी. बी. पाण्डेय ने अपनी पुस्तक “ शैक्षिक और सामाजिक अनुसंधान एवं सर्वेक्षण ” में कहा है, “मानव-जाति की अधिकतम उन्नति एवं विकास के क्रियान्वयन में अनुसंधान का बहुत ही महत्त्वपूर्ण योगदान है। इसीलिए अनुसंधान की ख्याति दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।”

शैक्षिक अनुसंधान का उद्देश्य

शैक्षिक समस्याओं का वैज्ञानिक विधि से निदान व समाधान करना है । डब्ल्यू. एस. मुनरो (W.S. Munroe) ने शैक्षिक अनुसंधान की परिभाषा देते हुए उसके उद्देश्य को इस प्रकार व्यक्त किया है- “अनुसंधान उन समस्याओं के अध्ययन की एक विधि है, जिसका अपूर्ण अथवा पूर्ण समाधान तथ्यों के आधार पर ढूँढना है। अनुसंधान के लिए तथ्य, लोगों के मतों के कथन, ऐतिहासिक तथ्य, लेख अथवा अभिलेख, परखों (Tests) से प्राप्त कर, प्रश्नावाली के उत्तर अथवा प्रयोगों से प्राप्त सामग्री से हो सकता है।”

वैज्ञानिक खोज और सिद्धान्त का विकास (Scientific Research and Principle of Development)

पारसनाथ राय एवं सी. भटनागर ने अपनी पुस्तक “अनुसंधान परिचय” में कहा है- “मनुष्य जैसे-जैसे प्रगति के पथ पर बढ़ता गया, उसने ज्ञान प्राप्त करने की नवीन विधियाँ खोजी……जिनमें केवल वैज्ञानिक विधि (Scientific Method) ही ज्ञान प्राप्त करने की प्रामाणिक विधि मानी जाती है।”

वैज्ञानिक खोज या अनुसंधान के अंतर्गत चरों तथा घटनाओं के पारस्परिक सम्बन्धों का वैज्ञानिक विधि के अनुसार अन्वेषण तथा विश्लेषण किया जाता है। यह सांख्यिकी विधि के आधार पर किया जाता है। अन्वेषण द्वारा प्राप्त व विश्वसनीयता की जाँच की जाती है। अत: अनुसंधान ज्ञान को विस्तृत, विशुद्ध, संगठित तथा क्रमबद्ध बनाता है। अनुसंधान द्वारा वैज्ञानिक ज्ञान की प्राप्ति की जाती है।

अनुसंधान की नई प्रवृतियाँ हैं- वस्तुनिष्ठता (Objectivity), निश्चयात्मकता (Definiteness), सत्यनीयता (Verifi-ability), सामान्यता (Generality), अर्थात् सिद्धान्त निर्माण, भविष्य-कथन की क्षमता, आत्म संशोधनीयता, (Self-correction), परिकल्पना (Hypothesis), का प्रयोग मात्रात्मक अनुमान (Qualitative estimate)।

अनुसंधान के प्रकार (Types of Research)

मूलभूत अनुसंधान (fundamental or basic research).

मूलभूत अनुसंधान में अनुसंधानकर्त्ता प्राकृतिक परिदृश्य (Phenomenon) को अपने अध्ययन के निष्कर्षों से सम्बन्धित करता है। इस प्रकार के अनुसंधान का उद्देश्य तथ्यों का एकत्रीकरण है क्योंकि ये तथ्य हमारे ज्ञान में वृद्धि करते हैं।

अनुप्रयुक्त अनुसंधान (Applied Research)

इस प्रकार के अनुसंधान द्वारा किसी विशेष समस्या का समाधान किया जाता है। इसमें विज्ञान के कुछ विशेष नियमों का किसी विशेष प्रकरण पर प्रभाव जाना जाता है। यदि अनुसंधानकर्त्ता किसी समस्या का समाधान करें तो यह अनुसंधान व्यहृत या अनुप्रयुक्त अनुसंधान कहलाता है

सामाजिक विज्ञानों में क्रियात्मक समस्याओं (Practical problems) पर किए गए अनुसंधान नए सिद्धान्तों तथा नियमों के बुलाने में सहायक होते हैं।

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शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - Research Hypothesis – Definition, Nature and Types

 शोध परिकल्पना - परिभाषा, प्रकृति और प्रकार - research hypothesis – definition, nature and types,   शोध परिकल्पना.

 परिकल्पना अनुसन्धान का एक प्रमुख एवं लाभदायक एवं उपयोगी हिस्सा है एक परिकल्पना के पीछे एक अच्छा अनुसन्धान छिपा होता है। बिना परिकल्पना के अनुसन्धा उद्देश्यहीन तथा बिन्दुहीन होता जाता है। बिना किसी अच्छे अर्थ के परिणाम अच्छे नहीं मिलते हैं इसलिये परिकल्पना का आकार मिश्रित तथा कठिन तथा लाभ से परिपूर्ण होता है। परिकल्पना का स्वरूप बड़ा एवं करीब होने पर इसके आकार को रद्दो बदल कर अनुसन्धान के अनुसार घटाया बढ़ाया जाता है। ऐसा नहीं किया जायेगा तो अनुसन्धानकर्ता अनावश्यक एवं तथ्यहीन आंकड़ों का प्रयोग किया जाता है।

शोध परिकल्पना :

परिकल्पना शब्द परि + कल्पना दो शब्दों से मिलकर बना है। परि का अर्थ चारो ओर तथा कल्पना का अर्थ चिन्तन है। इस प्रकार परिकल्पना से तात्पर्य किसी समस्या से सम्बन्धित समस्त सम्भावित समाधान पर विचार करना है।

परिकल्पना किसी भी अनुसन्धान प्रक्रिया का दूसरा महत्वपूर्ण स्तम्भ है। इसका तात्पर्य यह है कि किसी समस्या के विश्लेषण और परिभाषीकरण के पश्चात् उसमें कारणों तथा कार्य कारण सम्बन्ध में पूर्व चिन्तन कर लिया गया है, अर्थात् अमुक समस्या का यह कारण हो सकता है, यह निश्चित करने के पश्चात उसका परीक्षण प्रारम्भ हो जाता है। अनुसंधान कार्य परिकल्पना के निर्माण और उसके परीक्षण के बीच की प्रक्रिया है। परिकल्पना के निर्माण के बिना न तो कोई प्रयोग हो सकता है और न कोई वैज्ञानिक विधि के अनुसन्धान ही सम्भव है। वास्तव में परिकल्पना के अभाव में अनुसंधान कार्य एक उद्देश्यहीन क्रिया है।

  परिकल्पना की परिभाषा :

परिकल्पना की परिभाषा से समझने के लिए कुछ विद्वानों की परिभाषाओं को समझना आवश्यक है। जो निम्न है। 

करलिंगर ( Kerlinger) - "परिकल्पना को दो या दो से अधिक चरों के मध्य सम्बन्धों का कथन मानते हैं।"

मोले (George G. Mouley ) - "परिकल्पना एक धारणा अथवा तर्कवाक्य है जिसकी स्थिरता की परीक्षा उसकी अनुरूपता, उपयोग, अनुभव-जन्य प्रमाण तथा पूर्व ज्ञान के आधार पर करना है।"

गुड तथा हैट (Good & Hatt ) - "परिकल्पना इस बात का वर्णन करती है कि हम क्या देखना चाहते है। परिकल्पना भविष्य की ओर देखती है। यह एक तर्कपूर्ण कथन है जिसकी वैद्यता की परीक्षा की जा सकती है। यह सही भी सिद्ध हो सकती है, और गलत भी।"

लुण्डबर्ग (Lundberg ) - "परिकल्पना एक प्रयोग सम्बन्धी सामान्यीकरण है जिसकी वैधता की जाँच होती है। अपने मूलरूप में परिकल्पना एक अनुमान अथवा काल्पनिक विचार हो सकता है जो आगे के अनुसंधान के लिये आधार बनता है।"

मैकगुइन (Mc Guigan ) - "परिकल्पना दो या अधिक चरों के कार्यक्षम सम्बन्धों का परीक्षण योग्य कथन है।

अतः उपरोक्त परिभाषाओं के आधार पर यह कहा जा सकता है कि परिकल्पना किसी भी समस्या के लिये सुझाया गया वह उत्तर है जिसकी तर्कपूर्ण वैधता की जाँच की जा सकती है। यह दो या अधिक चरों के बीच किस प्रकार का सम्बन्ध है ये इंगित करता है तथा ये अनुसन्धान के विकास का उद्देश्यपूर्ण आधार भी है।

परिकल्पना की प्रकृति :

किसी भी परिकल्पना की प्रकर्षत निम्न रूप में हो सकती है। -

1. यह परीक्षण के योग्य होनी चाहिये ।

2. इसह शोध को सामान्य से विशिष्ट एवं विस्तृत से सीमित की ओर केन्द्रित करना चाहिए।

3. इससे शोध प्रश्नों का स्पष्ट उत्तर मिलना चाहिए।

4. यह सत्याभासी एवं तर्कयुक्त होनी चाहिए।

5. यह प्रकर्षत के ज्ञात नियमों के प्रतिकूल नहीं होनी चाहिए।

परिकल्पना के स्रोत :

परिकल्पनाओं के मुख्य स्रोत निम्नवत है।

समस्या से सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन

समस्या सम्बन्धित साहित्य का अध्ययन करके उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।

विज्ञान -

विज्ञान से प्रतिपादित सिद्धान्त परिकल्पनाओं को जन्म देते हैं।

संस्कृति -

संस्कृति परिकल्पना की जननी हो सकती है। प्रत्येक समाज में विभिन्न प्रकार की संस्कृति होती है। प्रत्येक संस्कृति सामाजिक एवं सांस्कर्षतिक मूल्यों में एक दूसरे से भिन्न होती है ये भिन्नता का आधार अनेक समस्याओं को जन्म देता है और जब इन समस्याओं से सम्बन्धित चिंतन किया जाता है तो परिकल्पनाओं का जन्म होता है।

व्यक्तिगत अनुभव

व्यक्तिगत अनुभव भी परिकल्पना का आधार होता है, किन्तु नये अनुसंध नकर्ता के लिये इसमें कठिनाई है। किसी भी क्षेत्र में जिनका अनुभव जितना ही सम्पन्न होता है, उन्हें समस्या के ढूँढ़ने तथा परिकल्पना बनाने में उतनी ही सरलता होती है।

  रचनात्मक चिंतन -

यह परिकल्पना के निर्माण का बहुत बड़ा आधार है। मुनरो ने इस पर विशेष बल दिया है। उन्होने इसके चार पद बताये हैं (i) तैयारी

 (ii) विकास

 (iii) प्रेरणा और

 (iv) परीक्षण | अर्थात किसी विचार के आने पर उसका विकास

किया, उस पर कार्य करने की प्रेरणा मिली, परिकल्पना निर्माण और परीक्षण किया।

अनुभवी व्यक्तियों से परिचर्चा -

अनुभवी एवं विषय विशेषज्ञों से परिचर्चा एवं मार्गदर्शन प्राप्त कर उपयुक्त परिकल्पना का निर्माण किया जा सकता है।

  पूर्व में हुए अनुसंधान

सम्बन्धित क्षेत्र के पूर्व अनुसंधानों के अवलोकन से ज्ञात होता है कि किस प्रकार की परिकल्पना पर कार्य किया गया है। उसी आधार पर नयी परिकल्पना का सब्जन किया जा सकता है।

उत्तम परिकल्पना की विशेषताएं या कसौटी :

एक उत्तम परिकल्पना की निम्न विशेषतायें होती हैं -

परिकल्पना जाँचनीय हो 

एक अच्छी परिकल्पना की पहचान यह है कि उसका प्रतिपादन इस ढंग से किया जाये कि उसकी जाँच करने के बाद यह निश्चित रूप से कहा जा सके कि परिकल्पना सही है या गलत । इसके लिये यह आवश्यक है कि परिकल्पना की अभिव्यक्ति विस्तष्त ढ़ंग से न करके विशिष्ट ढंग से की जाये। अतः जाँचनीय परिकल्पना वह परिकल्पना है जिसे विश्वास के साथ कहा जाय कि वह सही है या गलत ।

परिकल्पना मितव्ययी हो

परिकल्पना की मितव्ययिता से तात्पर्य उसके ऐसे स्वरूप से है जिसकी जाँच करने में समय, श्रम एवं धन कम से कम खर्च हो और सुविधा अधिक प्राप्त हो।

परिकल्पना को क्षेत्र के मौजूदा सिद्धान्तों तथा तथ्यों से सम्बन्धित होना चाहिए

कुछ परिकल्पना ऐसी होती है जिनमें शोध समस्या का उत्तर तभी मिल पाता है जब अन्य कई उप कल्पनायें (Sub-hypothesis) तैयार कर ली जाये। ऐसा इसलिये होता है क्योंकि उनमें तार्किक पूर्णता तथा व्यापकता के आधार के अभाव होते हैं जिसके कारण वे स्वयं कुछ नयी समस्याओं को जन्म दे देते हैं और उनके लिये उपकल्पनायें तथा तदर्थ पूर्वकल्पनायें (adhoc assumptions) तैयार कर लिया जाना आवश्यक हो जाता है। ऐसी स्थिति में हम ऐसी अपूर्ण परिकल्पना की जगह तार्किक रूप से पूर्ण एवं व्यापक परिकल्पना का चयन करते हैं।

परिकल्पना को किसी न किसी सिद्धान्त अथवा तथ्य अथवा अनुभव पर आधारित होना चाहिये

• परिकल्पना कपोल कल्पित अथवा केवल रोचक न हो। अर्थात् परिकल्पना ऐसी बातों पर आधारित न हो जिनका कोई सैद्धान्तिक आधार न हो। जैसे - काले रंग के लोग गोरे रंग के लोगों की अपेक्षा अधिक विनम्र होते हैं। इस प्रकार की परिकल्पना आधारहीन परिकल्पना है क्योंकि यह किसी सिद्धान्त या मॉडल पर आधारित नहीं है।

परिकल्पना द्वारा अधिक से अधिक सामान्यीकरण किया जा सके

परिकल्पना का अधिक से अधिक सामान्यीकरण तभी सम्भव है जब परिकल्पना न तो बहुत व्यापक हो और न ही बहुत विशिष्ट हो किसी भी अच्छी परिकल्पना को संकीर्ण ( narrow) होना चाहिये ताकि उसके द्वारा किया गया सामान्यीकरण उचित एवं उपयोगी हो ।

परिकल्पना को संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होना चाहिए

संप्रत्यात्मक रूप से स्पष्ट होने का अर्थ है परिकल्पना व्यवहारिक एवं वस्तुनिष्ठ ढंग से परिभाषित हो तथा उसके अर्थ से अधिकतर लोग सहमत हों । ऐसा न हो कि परिभाषा सिर्फ व्यक्ति की व्यक्गित सोच की उपज हो तथा जिसका अर्थ सिर्फ वही समझता हो।

इस प्रकार हम पाते हैं कि शोध मनोवैज्ञानिक ने शोध परिकल्पना की कुछ ऐसी कसौटियों या विशेषताओं का वर्णन किया है जिसके आधार पर एक अच्छी शोध परिकल्पना की पहचान की जा सकती है।

परिकल्पना के प्रकार 

मनोवैज्ञानिक, समाजशास्त्र तथा शिक्षा के क्षेत्र में शोधकर्ताओं द्वारा बनायी गयी परिकल्पनाओं के स्वरूप पर यदि ध्यान दिया जाय तो यह स्पष्ट हो जायेगा कि उसे कई प्रकारों में बाँटा जा सकता है। शोध विशेषज्ञों ने परिकल्पना का वर्गीकरण निम्नांकित तीन आधारों पर किया है -

चरों की संख्या के आधार पर -

साधारण परिकल्पना साधारण परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना - से है जिसमें चरों की संख्या मात्र दो होती है और इन्ही दो चरों के बीच के सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। उदाहरण स्वरूप बच्चों के सीखने में पुरस्कार का सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यहाँ सीखना तथा पुरस्कार दो चर है जिनके बीच एक विशेष सम्बन्ध की चर्चा की है। इस प्रकार परिकल्पना साधारण परिकल्पना कहलाती है।

जटिल परिकल्पना - जटिल परिकल्पना से तात्पर्य उस परिकल्पना से है जिसमें दो से अधिक चरों के बीच आपसी सम्बन्ध का अध्ययन किया जाता है। जैसे- अंग्रेजी माध्यम के निम्न उपलब्धि के विद्यार्थियों का व्यक्तित्व हिन्दी माध्यम के उच्च उपलब्धि के विद्यार्थियों की अपेक्षा अधिक परिपक्व होता है । इस परिकल्पना में हिन्दी अंग्रेजी माध्यम निम्न उच्च उपलब्धि स्तर एवं व्यक्तित्व तीन प्रकार के चर सम्मिलित हैं अतः यह एक जटिल परिकल्पना का उदाहरण है।

  चरों की विशेष सम्बन्ध के आधार पर

मैक्ग्यूगन ने (Mc. Guigan, 1990) ने इस कसौटी के आधार पर परिकल्पना के मुख्य दो प्रकार बताये हैं।

Ii) सार्वत्रिक या सार्वभौमिक परिकल्पना -

 सार्वत्रिक परिकल्पना से स्वयम् स्पष्ट होता है कि ऐसी परिकल्पना जो हर क्षेत्र और समय में समान रूप से व्याप्त हो अर्थात् परिकल्पना का स्वरूप ऐसा हो जो निहित चरों के सभी तरह के मानों के बीच के सम्बन्ध को हर परिस्थित में हर समय बनाये रखे। उदाहरण स्वरूप- पुरस्कार देने से सीखने की प्रक्रिया में तेजी आती है। यह एक ऐसी परिकल्पना है जिसमें बताया गया सम्बन्ध अधिकांश परिस्थितियों में लागू होता है।

(ii) अस्तित्वात्मक परिकल्पना

 इस प्रकार की परिकल्पना यदि सभी - व्यक्तियों या परिस्थितियों के लिये नही तो कम से कम एक व्यक्ति या परिस्थिति के लिये निश्चित रूप से सही होती है। जैसे सीखने की प्रक्रिया में कक्षा में कम से कम एक बालक ऐसा है पुरस्कार की बजाय दण्ड से सीखता है इस प्रकार की परिकल्पना अस्तित्वात्मक परिकल्पना है।

विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर

विशिष्ट उद्देश्य के आधार पर परिकल्पना के निम्न तीन प्रकार है।

(i) शोध परिकल्पना - इसे कार्यरूप परिकल्पना या कार्यात्मक परिकल्पना भी कहते हैं। ये परिकल्पना किसी न किसी सिद्धान्त पर आधारित या प्रेरित होती है। शोधकर्ता इस परिकल्पना की उदघोषणा बहुत ही विश्वास के साथ करता है तथा उसकी यह अभिलाषा होती है कि उसकी यह परिकल्पना सत्य सिद्ध हो उदाहरण के लिये 'करके सीखने' से प्राप्त अधिगम अधिक सुदृढ़ होता है और अधिक समय तक टिकता है।' चूँकि इस परिकल्पना में कथन 'करके सीखने के सिद्वान्त पर आधारित है अतः ये एक शोध परिकल्पना है।

शोध परिकल्पना दो प्रकार की होती है- 

दिशात्मक एवं अदिशात्मक | 

दिशात्मक परिकल्पना में परिकल्पना किसी एक दिशा अथवा दशा की ओर इंगित करती है जब कि अदिशात्मक परिकल्पना में ऐसा नही होता है।

उदाहरण- "विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि एवं कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि में अन्तर है।"

उपरोक्त परिकल्पना अदिशात्मक परिकल्पना का उदाहरण हैं।

क्योंकि बुद्धि में अन्तर किसका कम या ज्यादा है इस ओर संकेत नहीं किया गया। इसी परिकल्पना को यदि इस प्रकार लिखा जाय कि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि कला वर्ग के छात्रों की अपेक्षा कम होती है अथवा कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि से कम है तो यह एक दिशात्मक शोध परिकल्पना होगी क्योंकि इसमें कम या अ क एक दिशा की ओर संकेत किया गया है।

(ii) शून्य परिकल्पना 

शून्य परिकल्पना शोध परिकल्पना के ठीक विपरीत होती है। इस परिकल्पना के माध्यम से हम चरों के बीच कोई अन्तर नहीं होने के संबंध का उल्लेख करते हैं। उदाहरण स्वरूप उपरोक्त परिकल्पना को नल परिकल्पना के रूप में निम्न रूप से लिखा जा सकता है विज्ञान वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि एंव कला वर्ग के छात्रों की बुद्धि लब्धि में कोई अंतर नहीं है। एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि, "व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी सीखता है तो इस परिकल्पना की शून्य परिकल्पना यह होगी कि 'व्यक्ति सूझ द्वारा प्रयत्न और भूल की अपेक्षा जल्दी नहीं सीखता है। अतः उपरोक्त उदाहरणों के माध्यम से शून्य अथवा नल परिकल्पना को स्पष्ट रूप से समझा जा सकता है।

(iii) सांख्यिकीय परिकल्पना

 जब शोध परिकल्पना या शून्य परिकल्पना - का सांख्यिकीय पदों में अभिव्यक्त किया जाता है तो इस प्रकार की परिकल्पना सांख्यिकीय परिकल्पना कहलाती है। शोध परिकल्पना अथवा सांख्यिकीय परिकल्पना को सांख्यिकीय पदों में व्यक्त करने के लिये विशेष संकेतों का प्रयोग किया जाता है। शोध परिकल्पना के लिये H, तथा शून्य परिकल्पना के लिये H का प्रयोग होता है तथा माध्य के लिये X का प्रयोग किया जाता है।

उदाहरण- यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह 'क' बुद्धिलब्धि में समूह 'ख' से श्रेष्ठ है तो इसकी सांख्यिकीय परिकल्पना H तथा H के पदों में निम्नानुसार होगी -

H1 :  Xa > Xb

H0 : Xa = Xb

यहाँ पर माध्य X का प्रयोग इसलिये किया गया है क्योंकि एक दूसरे से बुद्धि लब्धि की श्रेष्ठता जानने के लिये दोनो समूहों की बुद्धि लब्धि का मध्यमान जानना होगा जिसके आधार पर श्रेष्ठता की माप की जा सकेगी।

इस प्रकार एक अन्य उदाहरण में यदि शोध परिकल्पना यह है कि समूह क की बुद्धि लब्धि एवं समूह 'ख' की बुद्धि लब्धि में अन्तर है तो इसकी H एवं H, इस प्रकार होगी।

H1 : Xa "" X b

H0 : Xa = X b

इस प्रकार विभिन्न प्रकार से शोध परिकल्पना का वर्गीकरण किया जा सकता है।

परिकल्पना के कार्य

अनुसन्धान कार्य में परिकल्पना के निम्नांकित कार्य है :

दिशा निर्देश देना

परिकल्पना अनुसंधानकता को निर्देशित करती है। इससे यह ज्ञात होता है कि अनुसन्धान कार्य में कौन कौन सी क्रियायें करती हैं एवं कैसे करनी है। अतः परिकल्पना के उचित निर्माण से कार्य की स्पष्ट दिशा निश्चित हो जाती है।

प्रमुख तथ्यों का चुनाव करना

परिकल्पना समस्या को सीमित करती है तथा महत्वपूर्ण तथ्यों के चुनाव में सहायता करती है। किसी भी क्षेत्र में कई प्रकार की समस्यायें हो सकती है लेकिन हमें अपने अध्ययन में उन समस्याओं में से किन पर अध्ययन करना है उनका चुनाव और सीमांकन परिकल्पना के माध्यम से ही होता है।

पुनरावृत्ति को सम्भव बनाना

पुनरावृत्ति अथवा पुनः परीक्षण द्वारा अनुसन्धान के निष्कर्ष की सत्यता का मूल्यांकन किया जाता है। परिकल्पना के अभाव में यह पुनः परीक्षण असम्भव होगा क्यों कि यह ज्ञात ही नहीं किया जा सकेगा किस विशेष पक्ष पर कार्य किया गया है तथा किसका नियंत्रण करके किसका अवलोकन किया गया है।

निष्कर्ष निकालने एवं नये सिद्धान्तों के प्रतिपादन करना -

परिकल्पना अनुसंधानकर्ता को एक निश्चित निष्कर्ष तक पहुंचने में सहायता करती है तथा जब कभी कभी मनोवैज्ञानिकों को यह विश्वास के साथ पता होता है कि अमुक घटना के पीछे क्या कारा है तो वह किसी सिद्धान्त की पष्ठभूमि की प्रतीक्षा किये बिना परिकल्पना बनाकर जाँच लेते हैं। परिकल्पना सत्य होने पर फिर वे अपनी पूर्वकल्पनाओं परिभाषाओं और सम्प्रत्ययों को तार्किक तंत्र में बांधकर एक नये सिद्धान्त का प्रतिपादन कर देते है।

अतः उपरोक्त वर्णन के आधार पर हम परिकल्पनाओं के क्या मुख्य कार्य है आदि की जानकारी स्पष्ट रूप से प्राप्त कर सकते हैं. किसी भी शोध परिकल्पना से तात्पर्य समस्या समाधान के लिये सुझाया गया वो उत्तर हैं जो दो या दो से अधिक चरों के बीच क्या और कैसा सम्बन्ध T है बताता है। शोध परिकल्पना को प्राप्त करने के कई स्रोत है व्यक्ति अपने आस-पास के वातावरण के प्रति सजग रहकर अपनी सूझ द्वारा इसे आसानी से प्राप्त कर सकता है। उत्तम परिकल्पनाओं की विशेषताओं पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। साथ ही परिकल्पनाओं के प्रकार को भी समझाया गया है।

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Education Aacharya - एजुकेशन आचार्य

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शोध पत्र कैसे लिखें ?[HOW TO WRITE A RESEARCH PAPER ?]

एक शोध कर्त्ता जब अपना शोध कार्य पूर्ण करता है तब वह शोध के लाभ को जन जन तक या तत्सम्बन्धी परिक्षेत्र के लोगों को उससे परिचित कराना चाहता है और शोध से प्राप्त दिशा पर विद्वत जनों काप्रतिक्रियात्मक दृष्टि कोण जानना चाहता है ऐसी स्थिति में सहज सर्वोत्तम विकल्प दिखता है -शोध पत्र सम्पूर्ण शोध ग्रन्थ को सार रूप में सरल,बोध गम्य,शीघ्र अधिगमन योग्य बनाने के लिए शोध पत्र का प्रयोग किया जाता है ऐसे कई शोध पत्र,शोध पत्रिकाओं का हिस्सा बन जाते हैं एवम ज्ञान पिपासुओं की ज्ञान क्षुधा की तृप्तीकरण का कार्य करते हैं तथा जन जन तक इसका लाभ पहुँचना सुगम हो जाता है सेमीनार में इन्ही शोधपत्रों का वाचन होता है। शोधपत्र से आशय(Meaning Of Research Paper )- शोधपत्र,शोध रिपोर्ट या शोध कार्य का व्यावहारिक प्रस्तुति योग्य सार आलेख है जो परिणाम को अन्तिम रूप में समेट भविष्य की दिशा निर्धारण में सहयोगान्मुख है। प्रो 0 एस 0 पी 0 गुप्ता ने अपनी पुस्तक अनुसंधान संदर्शिका में बताया – “पत्र पत्रिकाओं (Journals) में प्रकाशित होने वाले अथवा संगोष्ठियों (Seminars) व सम्मेलनों(Conferences) में वाचन हेतु तैयार किये गए अनुसन्धान कार्य सम्बन्धी लेखों को प्रायः अनुसंधान पत्रक (Research Paper)का नाम दिया जाता है।” इस सम्बन्ध में एक अन्य शिक्षा शास्त्री डॉ 0 आर 0 ए 0 शर्मा ने अपनी पुस्तक “शिक्षा अनुसन्धान के मूल तत्व एवं शोध प्रक्रिया” में लिखा – “शोध प्रपत्र लिखना कठिन कार्य है क्योंकि यह कार्य आलोचनात्मक,सृजनात्मक तथा चिन्तन स्तर का है। शोध प्रपत्र लेखन में एक विशिष्ट प्रक्रिया का अनुसरण करना होता है जिसमें समुचित क्रम को अपनाया जाता है।” अतः उक्त आलोक में कहा जा सकता है कि शोध प्रपत्र सम्पूर्ण शोध के परिणाम व सुझाव से युक्त वह प्रपत्र है जो स्व विचार के स्थान पर तथ्य निर्धारण हेतु तत्पर शोध आधारित दृष्टिकोण से वास्ता रखता है। शोध प्रपत्र के प्रकार (Types Of Research Paper)- काल व शोध के प्रकार के आधार पर शोध पत्र के प्रकारों का निर्धारण विद्वतजनों द्वारा किया गया है कुछ विशेष प्रकारों को इस प्रकार क्रम दे सकते हैं – विवाद प्रिय या तार्किक शोध पत्र (Argumentative Research Paper) कारण प्रभाव शोध पत्र (Cause and Effect Research Paper) विश्लेणात्मक शोध पत्र (Analytical Research Paper) परिभाषीकरण शोध पत्र (Definition Research Paper) तुलनात्मक शोध पत्र (Contrast Research Paper) व्याख्यात्मक शोध पत्र (Interpretive Research Paper) शोध प्रपत्र का प्रारूप (Research Paper Format)- शोध पत्र लिखने का कोई पूर्व निर्धारित प्रारूप सभी प्रकार के शोध हेतु निर्धारित नहीं है शोध कर्त्ता का सम्यक दृष्टि कोण ही शोध प्रपत्र का आधार बनता है फिर भी अपूर्णता से बचने हेतु सभी प्रमुख बिंदुओं को सूची बद्ध कर लेना चाहिए।दिशा,प्रवाह, अनुभव,अवलोकन सभी से शोध पत्र को प्रभावी बनाने में मदद मिलती है सामान्यतः शोध प्रपत्र प्रारूप में अधोलिखित बिन्दुओं को आधार बनाया सकता है। – (अ)- भूमिका (ब)- विषय वस्तु (स)- मुख्य अंश (द)- परिणाम व सुझाव संक्षेप में भूमिका लिखने के बाद विषय वस्तु से परिचय कराना चाहिए यहीं शोध शीर्षक के बारे में लिखकर मुख्य अंश के रूप में शोध प्रक्रिया,उपकरण व प्रदत्त संग्रहण,विश्लेषणआदि के बारे में संक्षेप में लिखते हुए प्राप्त परिणामों को सम्यक ढंग से प्रस्तुत करना चाहिए व इसी आधार पर सुझाव देने चाहिए अपने दृष्टिकोण को थोपने से बचना चाहिए। अच्छे शोध प्रपत्र के गुण (Qualities Of a Good Research Paper ) या अच्छे शोध प्रपत्र की विशेषताएं (Characteristics Of a Good Research Paper ) या अच्छे शोध प्रपत्र के लाभ (Advantage Of a Good Research Paper )- शोध प्रपत्र लिखना और सम्यक सन्तुलित शोध प्रपत्र लिखने में अन्तर है अतः प्रभावी शोध पत्र लिखने हेतु आपकी जागरूकता के साथ निम्न गुण ,विशेषताओं का होना आवश्यक है तभी समुचित लाभ प्राप्त होगा। (1 )- नवीन ज्ञान से संयुक्तीकरण। (2 )-शोध कार्यों सम्बन्धित दृष्टिकोण का सम्यक विकास। (3 )-पुनः आवृत्ति से बचाव। (4 )-परिश्रम को उचित दिशा। (5 )-विभिन्न परिक्षेत्र के शोधों से परिचय। (6 )-समीक्षा में सहायक। (7 )-विशेषज्ञों के सुझाव जानने का अवसर। (8 )-शक्ति व धन की मितव्ययता। (9 )-अनुभव में वृद्धि। (10 )-प्रसिद्धि में सहायक। सम्पूर्ण शोध पत्र लेखन के उपरान्त यदि वैदिक काल की मर्यादा के अनुसार सन्दर्भ ग्रन्थ सूची भी दे दी जाए तो कृतज्ञता ज्ञापन के साथ दूसरे शोध कर्त्ताओं की मदद हो सकेगी।

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रिसर्च डिज़ाइन क्या है?

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  • Updated on  
  • नवम्बर 14, 2022

विज्ञान और टेक्नोलॉजी, कला और संस्कृति, मीडिया अध्ययन, भूगोल, गणित और अन्य विषय हों, रिसर्च हमेशा अज्ञात को खोजने का मार्ग रहा है। वर्तमान निराशाजनक परिस्थितियों में जब कोरोनावायरस ने दुनिया को तहस-नहस कर दिया है, इसके इलाज के लिए टीके खोजने के लिए भारी मात्रा में रिसर्च किया जा रहा है। इस ब्लॉग में, हम समझेंगे कि विभिन्न प्रकार के रिसर्च डिज़ाइन और उनके संबंधित फैक्टर क्या है।

This Blog Includes:

एक रिसर्च डिज़ाइन क्या है, रिसर्च डिज़ाइन के लाभ, रिसर्च डिजाइन के तत्व, रिसर्च डिजाइन की विशेषताएं, ग्रुपिंग द्वारा रिसर्च डिज़ाइन प्रकार, जनसंख्या वर्ग स्टडी, क्रॉस सेक्शनल स्टडी, लोंगिट्यूडनल स्टडी, क्रॉस-सेक्युएंशियल स्टडी, क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव रिसर्च डिजाइन, फिक्स्ड बनाम फ्लेक्सिबल रिसर्च डिजाइन, रिसर्च डिज़ाइन ppt.

शोध’ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक कलेक्शन है जिसमें रिसर्च मेथड्स को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक हाइपोथिसिस स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन (कंपाइलेशन) है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है। रिसर्च अकादमिक के साथ-साथ वैज्ञानिक आधार पर भी किया जा सकता है। आइए पहले समझते हैं कि रिसर्च डिज़ाइन का वास्तव में क्या अर्थ है।

रिसर्च डिजाइन एक रिसर्चर को अज्ञात में अपनी यात्रा को आगे बढ़ाने में मदद करता है लेकिन उनके पक्ष में एक सिस्टेमेटिक अप्रोच के साथ। जिस तरह से एक इंजीनियर या आर्किटेक्ट एक स्ट्रक्चर के लिए एक डिजाइन तैयार करता है, उसी तरह रिसर्चर विभिन्न तरीकों से डिजाइन को चुनता है, ताकि यह जांचा जा सके कि किस प्रकार का रिसर्च किया जाना है।

रिसर्च डिज़ाइन के कुछ लाभ इस प्रकार हैं:

  • एक रिसर्च डिज़ाइन तैयार करने से रिसर्चर को अध्ययन के प्रत्येक चरण में सही निर्णय लेने में मदद मिलती है।
  • यह अध्ययन के प्रमुख और छोटे कार्यों की पहचान करने में मदद करता है।
  • यह शोध अध्ययन को प्रभावी और रोचक बनाता है।
  • इससे एक रिसर्चर आसानी से शोध कार्य के उद्देश्यों को तैयार कर सकता है।
  • एक अच्छे रिसर्च डिज़ाइन का मुख्य लाभ यह है कि यह शोध को संतुष्टि,आत्मविश्वास, एक्यूरेसी, रिलियाबिलिटी, कंटीन्यूटी और वैलिडिटी  प्रदान करता है।
  • इसके द्वारा लिमिटेड रिसोर्सेज  में भी सभी कार्यों को बेहतर तरीके से किया जा सकता है।
  • इससे रिसर्च में कम समय लगता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व दिए हैं:

  • एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि
  • रिसर्च मेथड का प्रकार
  • सटीक उद्देश्य कथन
  • शोध के लिए संभावित आपत्तियां
  • रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें
  • एनालिसिस का मापन
  • शोध अध्ययन के लिए सेटिंग्स

रिसर्च डिज़ाइन

रिसर्च डिजाइन के प्रकार

अब जब हम व्यापक रूप से क्लासीफाइड प्रकार के रिसर्च को जानते हैं, तो क्वांटिटेटिव और क्वालिटेटिव रिसर्च को निम्नलिखित 4 प्रमुख प्रकार के research design in Hindi में विभाजित किया जा सकता है-

  • डिस्क्रिप्टिव रिसर्च डिजाइन
  • कॉरिलेशनल रिसर्च डिजाइन
  • एक्सपेरिमेंटल रिसर्च डिजाइन 
  • डायग्नोस्टिक रिसर्च डिजाइन
  • एक्सप्लेनेटरी रिसर्च डिजाइन 

अध्ययन डिजाइन प्रकारों का एक अन्य क्लासिफिकेशन इस पर आधारित है कि प्रतिभागियों को कैसे क्लासीफाइड किया जाता है। ज्यादातर स्थितियों में, समूहीकरण रिसर्च के आधार और व्यक्तियों के नमूने के लिए उपयोग की जाने वाली विधि द्वारा निर्धारित किया जाता है। प्रायोगिक रिसर्च डिजाइन के आधार पर एक विशिष्ट अध्ययन में आम तौर पर कम से कम एक प्रयोगात्मक और एक नियंत्रण समूह होता है। चिकित्सा रिसर्च में, उदाहरण के लिए, एक समूह को चिकित्सा दी जा सकती है जबकि दूसरे को कोई नहीं मिलता है। तुम मेरा फॉलो समझो। हम प्रतिभागी समूहन के आधार पर चार प्रकार के अध्ययन डिजाइनों में अंतर कर सकते हैं:

एक को होर्ट अध्ययन एक प्रकार का अनुदैर्ध्य रिसर्च है जो पूर्व निर्धारित समय अंतराल पर एक समूह के क्रॉस-सेक्शन (एक सामान्य लक्षण वाले लोगों का एक समूह) लेता है। यह पैनल रिसर्च का एक रूप है जिसमें समूह के सभी लोगों में कुछ न कुछ समान होता है।

सामाजिक विज्ञान, चिकित्सा रिसर्च और जीव विज्ञान में, एक क्रॉस-अनुभागीय अध्ययन प्रचलित है। यह अध्ययन दृष्टिकोण किसी विशिष्ट समय पर जनसंख्या या जनसंख्या के प्रतिनिधि नमूने के डेटा की जांच करता है।

एक अनुदैर्ध्य अध्ययन एक प्रकार का अध्ययन है जिसमें एक ही चर को कम या लंबी अवधि में बार-बार देखा जाता है। यह आमतौर पर अवलोकन संबंधी शोध है, हालांकि यह दीर्घकालिक रेंडम  प्रयोग का रूप भी ले सकता है।

क्रॉस-अनुक्रमिक रिसर्च डिजाइन अनुदैर्ध्य और क्रॉस-अनुभागीय रिसर्च विधियों को जोड़ती है, दोनों में निहित कुछ दोषों की कंपनसेशन के लक्ष्य के साथ।

क्वांटिटेटिव वर्सेस क्वालिटेटिव research design in Hindi के बीच अंतर निम्नलिखित हैं-

परीक्षण के लिए विचारों और परिकल्पनाओं को रखने पर ध्यान केंद्रित करता है।विचारों को उत्पन्न करने और एक सिद्धांत या परिकल्पना विकसित करने पर ध्यान केंद्रित करें।
स्थिति की जांच के लिए गणित और सांख्यिकीय एनालिसिस का इस्तेमाल किया गया।एनालिसिस करने के लिए डेटा को सारांशित करना, क्लासिफाइड करना और एनालिसिस करना उपयोग किया गया था।
संख्याएँ, ग्राफ़ और तालिकाएँ अभिव्यक्ति के सबसे सामान्य रूप हैं।ज्यादातर शब्दों के साथ रिप्रेजेंटेशन  किया
संख्याएँ, ग्राफ़ और तालिकाएँ अभिव्यक्ति के सबसे सामान्य रूप हैं।ज्यादातर शब्दों के साथ रिप्रेजेंटेशन किया
बंद प्रश्न (बहुविकल्पी)ओपन एंडेड पूछताछ
मुख्य शब्द: परीक्षण, माप, निष्पक्षता, प्रतिकृति क्षमतामुख्य शब्द: समझ, संदर्भ, जटिलता, विषयपरकता

स्थिर और फ्लेक्सिबल research design in Hindi के बीच एक अंतर भी खींचा जा सकता है। क्वांटिटेटिव (निश्चित डिजाइन) और क्वालिटेटिव  (लचीला डिजाइन) डेटा एकत्र करना अक्सर इन दो अध्ययन डिजाइन श्रेणियों से जुड़ा होता है। आपके द्वारा डेटा एकत्र करना शुरू करने से पहले ही रिसर्च डिज़ाइन एक निर्धारित अध्ययन डिजाइन के साथ पूर्व-निर्धारित और समझा जाता है। दूसरी ओर, लचीले डिज़ाइन, डेटा संग्रह में अधिक लचीलापन प्रदान करते हैं – उदाहरण के लिए, आप निश्चित उत्तर विकल्प प्रदान नहीं करते हैं, इसलिए उत्तरदाताओं को अपने स्वयं के उत्तर देने होंगे।

Research design in Hindi के लिए PPT नीचे दी गई है-

चूंकि हम रिसर्च डिज़ाइन के प्रकारों से निपट रहे हैं, इसलिए यह समझना अनिवार्य है कि रिसर्च करने का अभ्यास कितना फायदेमंद है और इसके कुछ प्रमुख लाभ हैं: 1. रिसर्च विषय की गहरी समझ प्राप्त करने में मदद करता है। 2. आप इसके विविध पहलुओं के साथ-साथ इसके विभिन्न स्रोतों जैसे प्राथमिक और माध्यमिक के बारे में जानेंगे। 3. यह महत्वपूर्ण एनालिसिस और अनसुलझी समस्याओं के मापन के माध्यम से किसी भी क्षेत्र में जटिल समस्याओं को हल करने में मदद करता है।  4. आप यह भी जान पाएंगे कि संरक्षित मान्यताओं को तौलकर एक परिकल्पना कैसे बनाई जाती है।

रिसर्च ‘ शब्द से, हम समझ सकते हैं कि यह डेटा का एक संग्रह है जिसमें शोध पद्धतियों को ध्यान में रखते हुए महत्वपूर्ण जानकारी शामिल है। दूसरे शब्दों में, यह एक परिकल्पना स्थापित करके खोजी गई जानकारी या डेटा का संकलन है और इसके परिणामस्वरूप एक संगठित तरीके से वास्तविक निष्कर्ष सामने आता है।

यहाँ एक रिसर्च डिज़ाइन के सबसे महत्वपूर्ण तत्व है: 1. एकत्रित विवरण का एनालिसिस  करने के लिए लागू की गई विधि 2. रिसर्च पद्धति का प्रकार 3. सटीक उद्देश्य कथन 4. रिसर्च के लिए संभावित आपत्तियां 5. रिसर्च के संग्रह और एनालिसिस के लिए लागू की जाने वाली तकनीकें 6. समय 7. एनालिसिस का मापन 8. रिसर्च स्टडीज के लिए सेटिंग्स

एक सुनियोजित शोध डिजाइन  यह सुनिश्चित करने में मदद करता है कि आपके तरीके आपके शोध के उद्देश्यों से मेल खाते हैं, कि आप उच्च-गुणवत्ता वाले डेटा एकत्र करते हैं, और यह कि आप विश्वसनीय स्रोतों का उपयोग करते हुए अपने प्रश्नों का उत्तर देने के लिए सही प्रकार के विश्लेषण का उपयोग करते हैं  । यह आपको वैध, भरोसेमंद निष्कर्ष निकालने की अनुमति देता है।

रिसर्च के 5 घटक परिचय, साहित्य समीक्षा, विधि, परिणाम, चर्चा, निष्कर्ष है ।

उम्मीद है कि रिसर्च डिज़ाइन के बारे में आपको सभी जानकारियां मिल गई होंगी। यदि आप रिसर्च डिजाइन करना चाहते हैं तो Leverage Edu एक्सपर्ट्स के साथ 30 मिनट का फ्री सेशन 1800 572 000 बुक करें और बेहतर गाइडेंस पाएं।

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देवांग मैत्रेय

स्टडी अब्रॉड फील्ड के हिंदी एडिटर देवांग मैत्रे को कंटेंट और एडिटिंग में आधिकारिक तौर पर 7 वर्षों से ऊपर का अनुभव है। वह पूर्व में पोलिटिकल एडिटर-रणनीतिकार, एसोसिएट प्रोड्यूसर और कंटेंट राइटर/एडिटर रह चुके हैं। पत्रकारिता से अलग इन्हें अन्य क्षेत्रों में भी काम करने का अनुभव है। देवांग को काम से अलग आप नियो-नोयर फिल्म्स, सीरीज व ट्विटर पर गंभीर चिंतन करते हुए ढूंढ सकते हैं।

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कैसे एक शोधपत्र (Research Paper) लिखें

इस आर्टिकल के सहायक लेखक (co-author) हमारी बहुत ही अनुभवी एडिटर और रिसर्चर्स (researchers) टीम से हैं जो इस आर्टिकल में शामिल प्रत्येक जानकारी की सटीकता और व्यापकता की अच्छी तरह से जाँच करते हैं। wikiHow's Content Management Team बहुत ही सावधानी से हमारे एडिटोरियल स्टाफ (editorial staff) द्वारा किये गए कार्य को मॉनिटर करती है ये सुनिश्चित करने के लिए कि सभी आर्टिकल्स में दी गई जानकारी उच्च गुणवत्ता की है कि नहीं। यहाँ पर 8 रेफरेन्स दिए गए हैं जिन्हे आप आर्टिकल में नीचे देख सकते हैं। यह आर्टिकल १,४३,५४३ बार देखा गया है।

स्कूल की ऊंची कक्षाओं में पढ़ने के दौरान और कॉलेज पीरियड में हमेशा ही, आपको शोध-पत्र तैयार करने के लिए कहा जाएगा। एक शोध-पत्र का इस्तेमाल वैज्ञानिक, तकनीकी और सामाजिक मुद्दों की ख़ोज-बीन और पहचान में किया जा सकता है। यदि शोध-पत्र लेखन का आपका यह पहला अवसर है, तो बेशक कुछ डरावना भी लग सकता है, पर मस्तिष्क को अच्छी तरह से संयोजित और एकाग्र करें, तो आप खुद के लिए इस प्रक्रिया को आसान बना सकते हैं। शोध-पत्र तो स्वयं नहीं लिख जाएगा, पर आप इस प्रकार से योजना बना सकते हैं, और ऐसी तैयारी कर सकते हैं कि लेखन व्यावहारिक रूप में खुद-ब-खुद जेहन में उतरता चला जाए।

अपने विषयवस्तु का चयन

Step 1 अपने आप से महत्वपूर्ण प्रश्न कीजिए:

  • आम तौर पर, वेबसाइट जिनके नाम के अंत में .edu, .gov, या .org होता है, ऎसी सूचनाएं रखती हैं जिन्हें इस्तेमाल किया जा सकता है। ऐसा इसलिए है कि ये वेबसाइट स्कूलों, सरकार या उन संगठनों की होती हैं जो आपके विषय से सम्बंधित हैं।
  • अपनी खोज का प्रश्न बार-बार बदलें ताकि आपके विषय पर अलग-अलग तरह के खोज परिणाम मिलें। अगर कुछ भी मिलता नज़र न आये तो ऐसा हो सकता है कि आपकी खोज का प्रश्न अधिकाँश लेखों के शीर्षक से मेल नहीं खा रहा है जो आपके विषय पर हैं।

Step 5 एकेडमिक डेटाबेस का इस्तेमाल कीजिये:

  • ऐसे डेटाबेस ढूंढ़िए जो आपके विषय को ही सम्मिलित करते हों। उदहारण के लिए PsycINFO एक ऐसा डेटाबेस है जो कि केवल मनोविज्ञान और समाजशास्त्र के क्षेत्र में ही विद्वानों द्वारा किये काम को सम्मिलित करता है। एक सामान्य खोज के मुकाबले यह आपको अपने अनुरूप शोध सामग्री पाने में मदद करेगा। [२] X रिसर्च सोर्स
  • पूछताछ के एकाधिक खोज-बॉक्स या केवल केवल एक ही प्रकार के स्रोत वाले आर्काइव के साथ अधिकाँश अकादमिक डेटाबेस आपको ये सुविधा देते हैं कि आप बेहद विशिष्ट सूचना मांग सकें (जैसे केवल जर्नल आलेख या केवल समाचार पत्र)। इस सुविधा का लाभ उठाकर जितने अधिक खोज बॉक्स आप इस्तेमाल कर सकते हैं उतना करें।
  • अपने विभाग के पुस्तकालय जाएँ और लाइब्रेरियन से अकादमिक डेटाबेस, जिनकी सदस्यता ली गयी है, की पूरी सूची और उनके पासवर्ड ले लें।

Step 6 अपने शोध में रचनात्मक हो जाएँ:

एक रूपरेखा का निर्माण

Step 1 किताब पर टीका-टिप्पणी,...

  • रूपरेखा बनाने और शोधपत्र लिखने का काम आखिरकार आसान करने के लिए टीका-टिप्पणी का काम गहनता से कीजिये। जिस चीज़ के महत्वपूर्ण होने का आपको ज़रा भी अंदेशा हो या जो आपके शोधपत्र में इस्तेमाल हो सकता है, उसकी निशानदेही कर लीजिए।
  • जैसे-जैसे आप अपने शोध में महत्वपूर्ण हिस्सों को चिन्हित करते जाएँ, अपनी टिप्पणी और नोट जोड़ते जाएँ कि इन्हें आप अपने शोध-पत्र में कहाँ इस्तेमाल करेंगे। अपने विचारों को लिखना जैसे-जैसे वे आते जाएँ, आपके शोधपत्र लेखन को कहीं आसान बना देगा और ऎसी सामग्री के रूप में रहेगा जिसे आप सन्दर्भ के लिए फिर-फिर इस्तेमाल कर सकें।

Step 2 अपने नोट्स को सुनियोजित करें:

  • हर उद्धरण या विषय जिसे आपने चिन्हित किया है उसे अलग-अलग नोट कार्ड पर लिखने की कोशिश कीजिए। इस तरह से आप अपने कार्डों को मनचाहे ढंग से पुनर्व्यवस्थित कर सकेंगे।
  • अपने नोट का रंगों में कोड बना लें, ताकि वे आसान हो जाएँ। अलग-अलग स्रोतों से जो भी नोट आप ले रहे हैं, उन्हें सूची बद्ध कर लें, और फिर सूचना के अलग-अलग वर्गों को अलग-अलग रंगों में चिन्हित कर लें। उदाहरण के लिए, जो कुछ भी आप किसी विशेष किताब या जर्नल से ले रहे हैं उन्हें एक कागज़ पर लिख लें ताकि नोट्स को सुगठित किया जा सके, और फिर जो कुछ भी चरित्रों से सम्बंधित है उसे हरे से चिन्हित करें, कथानक से जुड़े सबकुछ को नारंगी रंग में चिन्हित करें, आदि-आदि।

Step 3 सन्दर्भों का पन्ना बना लें:

  • एक तार्किक शोधपत्र विवादित विषयों पर एक पक्ष लेता है और एक दृष्टिकोण के लिए तर्क प्रस्तुत करता है। मुद्दे पर एक तर्कसंगत प्रतिपक्ष के साथ बहस की जानी चाहिए।
  • एक विश्लेषणात्मक शोधपत्र किसी महत्त्वपूर्ण विषय पर नए सिरे से दृष्टिपात करता है। विषय आवश्यक नहीं है कि विवादित हो, पर आपको अपने पाठकों को सहमत करना पड़ेगा कि आपके विचारों में गुणवत्ता है। यह महज आपके शोध से विचारों की उबकाई भर नहीं, बल्कि अपने उन विशिष्ट अद्वितीय विचारों की प्रस्तुति है जिन्हें आपने गहन शोध से सीखा है।

Step 5 आपके पाठक कौन होंगे यह निर्धारित कर लीजिये:

  • थीसिस विकसित करने का आसान तरीका है कि उसे एक प्रश्न के रूप में ढालिए जिसका आपका निबंध उत्तर देगा। वह मुख्य प्रश्न या हाइपोथीसिस क्या है जिसको आप अपने शोधपत्र में प्रमाणित करना चाहते हैं? उदाहरण के लिए आपकी थीसिस का प्रश्न हो सकता है, “मानसिक बीमारियों के इलाज की सफलता को सांस्कृतिक स्वीकृति कैसे प्रभावित करती है?” यह प्रश्न आपकी थीसिस क्या होगी उसे निर्धारित कर सकता है – इस प्रश्न के लिए आपका जो भी उत्तर होगा, वही आपका थीसिस-कथन होगा।
  • शोधपत्र के सभी तर्कों को दिए बिना या उसकी रूपरेखा बताये बिना ही आपकी थीसिस को आपके शोध के मुख्य विचार को व्यक्त करना होगा। यह एक सरल कथन होना चाहिए, न कि कई सहायक वाक्यों का एक समूह, आपका बाक़ी शोधपत्र तो इस काम के लिए है ही!

Step 7 अपने मुख्य बिन्दुओं को निर्धारित कर दें:

  • जब आप अपने मुख्य विचारों की रूप-रेखा बनाएं, उनको एक विशिष्ट क्रम में रखना अहम है। अपने सबसे मज़बूत तर्कों को निबंध के सबसे पहले और सबसे अंत में रखिये। जबकि ज्यादा औसत बिन्दुओं को निबंध के बीचोंबीच या अंत की तरफ रखिये।
  • सबसे मुख्य बिन्दुओं को एक ही पैराग्राफ में समेटना ज़रूरी नहीं है, विशेष करके अगर आप एक अपेक्षाकृत लंबा शोधपत्र लिख रहे हैं। प्रमुख विचारों को जितने पैराग्राफ में आप ज़रूरी समझें फैलाकर लिख सकते हैं।

Step 8 फॉरमैटिंग के दिशानिर्देशों को ध्यान में रखिये:

  • अपनी हर बात को साक्ष्यों से पुष्ट करें। क्योंकि यह एक शोधपत्र है इसलिए ऐसी टिप्पणी न करें जिसकी पुष्टि सीधे आपके शोध के तथ्यों से न हो।
  • अपने शोध में पर्याप्त व्याख्याएं दीजिये। बिना तथ्यों के अपने मत के बखान का विलोम बगैर किसी व्याख्या के बिना तथ्यों को देना होगा। यद्यपि आप निश्चित ही पर्याप्त प्रमाण देना चाहते हैं, तो भी जहां भी संभव हो अपनी टिप्पणी जोड़ते हुए यह सुनिश्चित कीजिए कि शोधपत्र पर आपकी मौलिक और विशिष्ट छाप हो।
  • बहुत सारे सीधे लम्बे उद्धरण देने से बचें। यद्यपि आपका निबंध शोध पर आधारित है, फिर भी महत्वपूर्ण बात यह है कि आपको अपने विचार प्रस्तुत करने हैं। जिस उद्धरण का आप इस्तेमाल करना चाहते हैं, जब तक वह बेहद अनिवार्य न हो, उसे अपने ही शब्दों में व्यक्त और विश्लेषित करने की कोशिश कीजिए।
  • अपने पेपर में साफ़-सुथरे और संतुलित गति से एक बिंदु से दूसरे तक जाने का प्रयास करें। निबंध में स्वछन्द तारतम्य और प्रवाह होना चाहिए, इसके बजाय कि अनाड़ी की तरह रुक-रुक कर क्रम टूटे और फिर अचानक शुरू हो जाए। यह ध्यान रखें कि लेख के मुख्य भाग वाला हर पैरा अपने बाद वाले से जाकर मिलता हो।

Step 2 निष्कर्ष लिखें:

  • आपके निष्कर्ष का लक्ष्य, साधारण शब्दों में, इस प्रश्न का उत्तर देना है, “तो क्या?” ध्यान रखें कि पाठक आख़िरकार महसूस करे कि उसे कुछ प्राप्त हुआ है।
  • कई कारणों से अच्छा नुस्खा तो यह है कि, निष्कर्ष को भूमिका के पहले लिख लिया जाये। पहली बात तो यह है कि जब प्रमाण आपके दिमाग में ताज़ा हों तो निष्कर्ष लिखना ज्यादा आसान होता है। उससे भी बड़ी बात यह है, सलाह दी जाती है कि आप निष्कर्ष में अपने सबसे चुनिन्दा शब्द और भाषा का मजबूती से इस्तेमाल करें और फिर उन्हीं विचारों को भिन्न शब्दों में अपेक्षाकृत कम वेग के साथ भूमिका में रख दें, न कि इसका उल्टा करें; यह पाठकों पर ज्यादा स्थायी प्रभाव छोड़ेगा।

Step 3 निबंध की प्रस्तावना लिखें:

  • MLA फॉर्मेट को विशेष रूप से साहित्यिक शोध-पत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें ‘उद्धृत सामग्री’ की एक सूची अंत में जोड़नी होती है, इस विधि में अंतरपाठीय उद्धरण प्रयोग किये जाते हैं।
  • APA फॉर्मेट का इस्तेमाल सामाजिक विज्ञान के क्षेत्र में शोधपत्रों के लिए शोधकर्त्ताओं द्वारा किया जाता है, और इसमें भी अंतरपाठीय उद्धरण देने होते हैं। इसमें निबंध का अंत “सन्दर्भ” पृष्ठ के साथ होता है, और इसमें मुख्य भाग के पैराग्राफों के बीच में अनुच्छेद शीर्षक का प्रयोग भी किया जा सकता है।
  • शिकागो फोर्मटिंग को प्रमुखतः ऐतिहासिक शोधपत्रों के लिए इस्तेमाल किया जाता है और इसमें अंतरपाठीय उद्धरण के स्थान पर पृष्ठ के नीचे फुटनोट का प्रयोग होता है और साथ में एक ‘उद्धृत सामग्री’ और सन्दर्भों का पृष्ठ जुड़ता है। [७] X रिसर्च सोर्स

Step 5 अपने कच्चे प्रारूप...

  • अपने पेपर का सम्पादन यदि खुद आपने किया है, तो उस पर वापस आने से पहले कम से कम तीन दिन प्रतीक्षा कीजिए। अध्ययन दिखाते हैं कि, लेख समाप्त करने के बाद भी दो-तीन दिन तक यह आपके जेहन में ताज़ा बना रहता है, और इसलिए ज्यादा संभावना यह रहेगी कि आम तौर पर आप जिन बुनियादी त्रुटियों को पकड़ पाते, उन्हें भी अपनी सरसरी नज़र में नजरअंदाज कर जाएँगे।
  • दूसरों के द्वारा संपादन को महज इसलिए नजरअंदाज न करें कि उनसे आपका काम बढ़ जाएगा। अगर वे आपके पेपर के किसी अंश को दोबारा लिखे जाने की सलाह दे रहे हों तो उनके इस आग्रह का संभवतया उचित कारण है। अपने पेपर के सघन सम्पादन पर समय दीजिए। [८] X रिसर्च सोर्स

Step 6 अंतिम ड्राफ्ट को लिखिए:

  • रिसर्च के दौरान महत्वपूर्ण थीम, प्रश्नों और केन्द्रीय मुद्दों को ढूँढ़ें।
  • यह समझने की कोशिश करें कि, आप वास्तव में निर्दिष्ट रूप में किस चीज़ का अन्वेषण करना चाहते हैं, इसके बजाय कि पेपर में ढेर सारे व्यापक विचारों को ठूस दिया जाए।
  • ऐसा करने के लिये अंतिम क्षण तक प्रतीक्षा मत कीजिए।
  • अपने असाइंमेंट को समयानुसार पूरा करना सुनिश्चित कीजिए।

संबंधित लेखों

एक सायनोप्सिस (synopsis) लिखें

  • ↑ http://www.infoplease.com/homework/t3sourcesofinfo.html
  • ↑ http://www.ebscohost.com/academic
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/552/03/
  • ↑ http://owl.english.purdue.edu/owl/resource/544/02/
  • ↑ http://www.indiana.edu/~wts/pamphlets/thesis_statement.shtml
  • ↑ http://libguides.jcu.edu.au/content.php?pid=83923&sid=3619280
  • ↑ http://writing.yalecollege.yale.edu/why-are-there-different-citation-styles
  • ↑ http://professionalonlineediting.com/how-to-edit-your-essay-or-research-paper-fast.asp

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अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं|अनुसंधान के प्रकार का वर्णन| Types of Research in Hindi

अनुसंधान के प्रकार का वर्णन types of research in hindi.

अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं|अनुसंधान के प्रकार का वर्णन| Types of Research in Hindi

अनुसंधान कितने प्रकार के होते हैं ?

सामान्यतः अनुसन्धान निम्न प्रकार का होता है-   ऐतिहासिक अनुसन्धान ( historical research)  वर्णनात्मक अनुसन्धान ( descriptive research) प्रयोगात्मक अनुसन्धान ( experimental research) क्रियात्मक अनुसन्धान ( actionable research) अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान ( inter-disciplinary research) , ऐतिहासिक अनुसन्धान  historical research details in hindi, जॉन डब्ल्यू. बेस्ट के अनुसार ,  " ऐतिहासिक अनुसन्धान का सम्बन्ध ऐतिहासिक समस्या के वैज्ञानिक विश्लेषण से है। विभिन्न पद भूतकाल के सम्बन्ध में एक नई सूझ पैदा करते है ,  जिसका सम्बन्ध वर्तमान एवं भविष्य से होता है। "   ऐतिहासिक अनुसन्धान के मूल उद्देश्य है-.

  • भूत के आधार पर वर्तमान को समझना और भविष्य के लिए सतर्क रहना।
  • शिक्षा मनोविज्ञान अमदा सामाजिक विज्ञानों में चिन्तन को नई दिशा देना।
  •   भूतकालीन तथ्यों के प्रति जिज्ञासा की तृप्ति ।
  • वर्तमान में सिद्धान्त और क्रियाएँ जो व्यवहार में है ,  उनके उद्भव में विकास की परिस्थितियों का विश्लेषण

  ऐतिहासिक अनुसन्धान के चरण  Steps of Historical Research

ऐतिहासिक अनुसन्धान के निम्नलिखित चरण होते हैं- 1.        ऑकड़ों   का संग्रह 2.        ऑकड़ों का विश्लेषण 3.        उपरोक्त आधार पर तथ्यों का विश्लेषण एवं रिपोर्ट    , ऐतिहासिक अनुसन्धान के क्षेत्र में निम्नलिखित बातों को शामिल किया जा सकता है।.

  • शिक्षाशास्त्रियों मनोवैज्ञानिकों के सुझाव।
  • प्रयोगशाला एवं संस्थाओं द्वारा किए गए व्यावहारिक कार्य।
  • विभिन्न समय अवधि में विचारों के बदलाव व विकास की स्थिति ।
  • विशेष प्रकार की विचारधारा का प्रभाव व उसके स्त्रोत।
  • पुस्तक सूची की तैयारी।

वर्णनात्मक अनुसन्धान   Descriptive Research Details in Hindi

इसके अन्तर्गत स्पष्ट परिभाषित समस्या पर कार्य किया जाता है। यह विशेष सरल एवं अत्यन्त कठिन ,  दोनों प्रकार का हो    सकता है। यह   ' क्या है '  को स्पष्ट करता है। इसके अन्तर्गत समस्या समाधान हेतु उपयोगी सूचना प्राप्त करते हैं। इसके कल्पनापूर्ण नियोजन आवश्यक है। यह अनुसन्धान संख्यात्मक एवं गुणात्मक दोनों हो सकता है।, वर्णनात्मक अनुसन्धान के उद्देश्य  , भविष्य के अनुसन्धान के प्राथमिक अध्ययन में सहायता करना। मनोवैज्ञानिक विशेषताओं से परिचय प्राप्त करना और शैक्षिक नियोजन में सहायता करना।   मानव व्यवहार के विभिन्न पक्षों की जानकारी प्राप्त करना।, वर्णनात्मक अनुसन्धान के चरण steps of descriptive research  , वर्णनात्मक अनुसन्धान के निम्नलिखित चरण है-   अनुसन्धान समस्या का कथन यह निर्धारित करना कि समस्या सर्वेक्षण अनुसन्धान के उपयुक्त है या नहीं। उचित सर्वेक्षण विधि का चुनाव ।   सर्वेक्षण के उद्देश्यों का निर्धारण । सर्वेक्षण की सफलता का निर्धारण। आँकड़े प्राप्त करने का अभिकल्प। आँकड़ों का संग्रह। आंकड़ों का विश्लेषण। प्रतिवेदन तैयार करना।  , वर्णनात्मक अनुसन्धान के प्रकार types of descriptive research  , सर्वेक्षण अध्ययन अन्तर्सम्बन्धी का अध्ययन विकासात्मक अध्ययन, प्रयोगात्मक अनुसन्धान   experimental research details in hindi, यह ऐसी विधि है जिसमें हम   किसी सूक्ष्म समस्या का समाधान प्रस्तुत कर सकते हैं । यह विधि अर्थ एवं उपयोगिता की दृष्टि से व्यावहारिक है। इसमें अध्ययन नियन्त्रित परिस्थिति में किया जाता है। यह विधि एकल चर की धारणा पर आधारित है। यह सभी विज्ञानों में प्रयुक्त की जाती है।, प्रयोगात्मक   अनुसन्धान के   चरण, प्रयोग अनुसन्धान के विभिन्न चरण इस प्रकार है   समस्या से सम्बन्धित साहित्य का सर्वेक्षण समस्या का चयन एवं परिभाषीकरण परिकल्पना निर्माण ,  विशिष्ट पदावली तथा चरों की व्याख्या प्रयोगात्मक योजना का निर्माण।   प्रयोग करना। आंकड़ों का संकलन एवं सारणीयन प्राप्त निष्कर्ष का मापन निष्कर्ष का विश्लेषण एवं व्याख्या निष्कर्ष का विधिवत् प्रतिवेदन तैयार करना।  , क्रियात्मक अनुसन्धान    actionable research details in hindi,   कोर के अनुसार ,   " यह वह प्रक्रिया है जिसके द्वारा व्यावहारिक कार्यकर्ता वैज्ञानिक विधि से अपनी समस्याओं का अध्ययन ,  अपने निर्णय व क्रियाओं में निर्देशन ,  सुधार और मूल्यांकन करते हैं। " क्रियात्मक अनुसन्धान ,  शोध का ऐसा स्वरूप है जिसमें समस्याओं के सैद्धान्तिक अध्ययन के साथ उसके व्यावहारिक अध्ययन पर न केवल बल दिया जाता है ,  बल्कि व्यावहारिक पक्ष अधिक    हावी होता है। क्रियात्मक शोधकर्ता घटनाओं की वस्तुस्थिति को समझकर ,  उनके तथ्यों का अध्ययन करके उन तथ्यों के आधार पर व्यावहारिक समस्या के हल के लिए प्रयत्न करता है।  , क्रियात्मक शोध के चरण.

  • विभिन्न श्रेणी के बालकों के लिए अलग-अलग तरह का पाठ्यक्रम निर्धारित करने ,  बदलाव लाने ,  इसे समय के अनुरूप करने का कार्य ,  क्रियात्मक शोध द्वारा किया जाता है।
  • यह शिक्षार्थियों के साथ शिक्षकों की समस्याओं का भी हल करता है। शैक्षिक प्रगति के मूल्यांकन का कार्य भी इस पद्धति द्वारा किया जाता है।

अन्तर- अनुशासनात्मक अनुसन्धान    Inter-disciplinary Research Details in Hindi

इसका अर्थ है कि प्रत्येक विषय को एक पूर्ण इकाई के रूप में अलग-अलग लेकर अनेक विषयों (अनुशासन) , जिनका एक ही लक्ष्य हो , उन्हें एक समूह में रखा जाए , जिसमें छात्रों को अधिकतम लाभ हो और एक समन्वित ज्ञान का विकास हो।

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Research मीनिंग : Meaning of Research in Hindi - Definition and Translation

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RESEARCH MEANING IN HINDI - EXACT MATCHES

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Definition of research.

  • systematic investigation to establish facts
  • a search for knowledge; "their pottery deserves more research than it has received"
  • inquire into; "the students had to research the history of the Second World War for their history project"; "He searched for information on his relatives on the web"; "Scientists are exploring the nature of consciousness"

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Research meaning in Hindi : Get meaning and translation of Research in Hindi language with grammar,antonyms,synonyms and sentence usages by ShabdKhoj. Know answer of question : what is meaning of Research in Hindi? Research ka matalab hindi me kya hai (Research का हिंदी में मतलब ). Research meaning in Hindi (हिन्दी मे मीनिंग ) is शोध.English definition of Research : systematic investigation to establish facts

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Meaning summary.

Synonym/Similar Words : explore , inquiry , enquiry , interrogatory , search

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